किसी फूल को ख़बर क्या,
वो कल कहाँ रहेगा?
किसी देवता के सिर पर-
या कब्र पर चढ़ेगा।।
आज का ये अर्जुन,
कल बन न जाये शकुनी।
कृष्णोपदेश लेकर-
नहिं युद्ध वो लड़ेगा।।
तरकश से वाण निकले,
भेदे न लक्ष्य अपना।
साधक भ्रमित हुआ तो-
नहिं लक्ष्य तक बढ़ेगा।।
उद्देश्य यदि हो सार्थक,
उद्यम नहीं निरर्थक।
उत्साह युक्त मानव-
खतरों से क्या डरेगा!!
जलता रहे यहाँ यदि,
आशा का दीप हरदम।
तो वायु-तीब्रता का-
नहिं जोर कुछ चलेगा।।
डग-मग भँवर में नैया,
यदि दक्ष हो खेवैया।
लहरों के घात सह कर-
साहिल पे आ टिकेगा।।
धीरज-विवेक दोनों,
यदि साथ हैं तुम्हारे।
संकट पथिक तुम्हारा-
निश्चित,सुनो,कटेगा।।
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