होली-ईद-दीवाली तीनों,
होतीं प्रेम -पियाली।
प्रेम-पाग का रस पी के-
जन गायें फ़ाग-कौव्वाली।।सभी पैगामे मोहब्ब्त-सभी पैगामे मोहब्ब्त।।
होली के सब रंग निराले,
खेलें सङ्ग सेवइयां वाले।
दीवाली का दीप जला कर-
घर-आँगन में करें उजाले।।
करें सब ग़म को रुख़सत-सभी पैगामे मोहब्ब्त।।
भात-भोज-उत्सव-पर्वों पर,
सब मिल कर नाचें-गायें।
मिल कर दोनों मुल्ला-पण्डित-
रचि-रचि भोग लगायें।।
धर्म की अद्भुत सोहबत-यही पैगामे मोहब्ब्त।।
नन्दन-क्रन्दन दोनों में भी,
रहें सभी सहभागी।
चलें क़दम से क़दम मिला कर-
बीतराग-अनुरागी।।
नहीं लें काम से मोहलत।।सभी पैगामे मोहब्ब्त।।
होते फूल गोया बहुरंगी,
पर रहता एक चमन है।
भाँति-भाँति की खुशबू ले के-
देता शांति-अमन है।।
चमन में ग़ज़ब की क़ुव्वत-यही पैगामे मोहब्ब्त।।
अम्बर की महफ़िल सजती है,
सूरज-चाँद-सितारों से।
गौरव-गरिमा मुल्क़ की बढ़ती-
छोटे-बड़ किरदारों से।।
बढ़ायें सब मिल कर शोहरत-यही पैगामे मोहब्ब्त।।
No comments:
Post a Comment