देखो नहीं मजलूम को,हिकारत की नज़र से।
तुम दोनों का है वास्ता,बस एकी शहर से।।
क्या पता पहले कभी थे,हमसफ़र दोनों।
गुजरे हो दौरे कहर बस,एकी कहर से।।
हैं ज़िन्दगी की राह पे,काँटे बिछे हुए।
गुजरोगे तुम यक़ीनन,कल उसी डगर से।।
आहे गरीब फाड़ दे सीना-ए-आफताब।
ज्वाला धधक के निकले,सुलगते ज़िगर से।।
मासूमियत में उसकी,बसता है नाग-लोक।
कूपित हुआ तो बच नहीं, पाओगे ज़हर से।।
बेबसी को उसकी कमज़ोरी,न समझना।
कट जाते हैं पत्थर भी,दरिया की लहर से।।
ख़िताबे गरीब नेवाज़ से,नवाज़े गए ख़ुदा।
ख़ुदा हुए ख़ुदा महज़,ग़रीबी की असर से।।
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