समझे हमें थे वो कभी गुनहगार की तरह।
बातें हुयीं हैं आज,मग़र यार की तरह।।
उनके तमाम शिकवे अब काफ़ूर हो गए।
करते हमारा पीछा यूँ,तलबगार की तरह।।
लोगों से जा के कह दो पालें भरम न मन में।
चुभता भरम है हरदम,इक खार की तरह।।
होता बड़ा ही नाजुक ये दोस्ती का रिश्ता।
शक काटता इसे छुरी,धारदार की तरह।।
लाखों-करोड़ों जानें बच जायेंगी यहां।
यदि पूज्य होवे इश्क़,परवरदिगार की तरह।।
ईश्वर में और इश्क़ में होता नहीं है अन्तर।
हैं दोनों पूज्य सबके,ब्रह्म-सार की तरह।।
ईमां-धरम को रखना यारों सम्हाल के।
हैं ज़िन्दगी के गहने ये,सद्विचार की तरह।।
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