Monday, May 27, 2019

मनवाँ रे!...



मनवाँ रे!तोरा मरम न जाने कोय।।
कबहुँ उड़े चंचल खग जैसा,पलक झपे कहुँ खोय।
थकित,श्रान्त,बोझिल हो कबहूँ नीड़हि अपुने सोय ।।
                 मनवाँ रे!....
कबहुँ भोग तोहें अति भावे,कबहुँ योग में तू रम जाये।
इत-उत भरमे भ्रमित भ्रमर इव,भरम दूर नहि होय।।
            मनवाँ रे!....
कोउ कहे तू जीत है एक पल,कोउ कहे तू हार।
हार-जीत सब तेरी माया और नहीं कछु  होय।।
          मनवाँ रे!....
पाप-पुन्य के तुमही दाता, यश-अपयश की राह दिखाता।
तू जो जागे जीत जगत में, हार मिले जो सोय ।।
          मनवाँ रे!....
काया-स्वामी मन कहलाये,सबको नाच नचाये।
पल-छिन नाचे स्वयं ये मनवाँ,नहीं कछू अब गोय।।
    मनवाँ रे!तोरा मरम न जाने कोय ।।

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