आज मौसम का रुख कुछ है बदला,
लगता तूफ़ान है आने वाला।
अभी तक रही चाँदनी जो यहां-
हो गया उसका धुँधला उजाला।।
शोर करने लगीं हैं हवायें,
काँपने अब लगीं हैं दिशायें।
नभ में बादल उमड़ने लगे हैं-
पेट सरिता का है भरने वाला।।
तोड़ तट-बन्ध को जल बहेगा,
नष्ट फसलों को अब वह करेगा।
बाढ़ का हो निरंकुश यह पानी-
छिनने वाला है मुख का निवाला।।
ज़िन्दगी की सुनोगे रुलाई,
होगी खुशियों की झट-पट विदाई।
सुख लुटाती हुयी ज़िन्दगी का-
अब तो निकलेगा सारा दिवाला।।
जग सुरक्षित रहेगा जभी,
सुख की सरिता बहेगी तभी।
प्यार कर लो प्रकृति से ज़रा सा-
मारेगा सुख को ना पाला।।
पेड़-पर्वत-नदी की रवानी,
हैं ये क़ुदरत की सारी निशानी।
इनकी रक्षा स्वयम की है रक्षा-
प्यार क़ुदरत से कर लो निराला।।
क़ुदरत सुरक्षित तो जीवन सुरक्षित,
जीवन सुरक्षित,न खुशियों से वंचित।
यही धारणा यदि रहेगी सदा तो-
नहीं बाल बांका कभी होने वाला।।
प्यार क़ुदरत से कर लो निराला।।
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