होती धार क़लम की तेज,तलवार की जो है।
झट करती निपटारा,गुनहगार जो भी है।।
सर काटे तलवार सभी को मालूम है,
रक्त-पात हर बार, सभी को मालूम है।
करती कलम महज़ कागज़ पे,पलटवार जो भी है।।
झट करती निपटारा......।।
सैनिक ले हथियार शोर बहु करते हैं,
रण-भेरी घनघोर,जोर बहु करते हैं।
करती क़लम सलीक़े से,भावोद्गार जो भी है।।
झट करती निपटारा......।।
तलवार-भक्त-जन हिंसक हैं,
मानवता के परम शत्रु, विद्ध्वंसक हैं।
शान्ति-भाव से क़लम करे,प्रतिकार जो भी है।।
झट करती निपटारा......।।
ऐटम-बॉम्ब-मिसाइल-युग है,
औ भष्माग्नि रफाएल-युग है।
किया क़लम ने हर युग में,अमन-प्रहार जो भी है।।
झट करती निपटारा.......
कलम से अक्षर बनते हैं,
मानव की पहचान-साक्ष्य जो गढ़ते हैं।
करो क़लम का सब मिलि अब,सत्कार जो भी है।।
झट करती निपटारा.......।।
खड्ग-कटार की संस्कृति त्यागो,
ऐटम-बॉम्ब-मिसाइल न दागो।
होवे क़लम मात्र ही अपना,यह हथियार जो भी है।।
झट करती निपटारा,गुनहगार जो भी है ।।
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