Thursday, January 24, 2019

यह मुल्क़....


यह मुल्क़ हिंदुस्तान है ये मुल्क़ हमारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।
गांधी-जवाहर-बोस की आंखों का है तारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
          इस मुल्क़ में कोयल सुनाये गीत सुहानी,
          बहती हवा सदा बताये इसकी कहानी।
          सारे जहां का यही रहा सदियों सहारा,
          हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा। if।
                         यह मुल्क़....
इसकी बसन्ती बास में है प्यार की खुशबू,
ऋतुयें तमाम करतीं फिरें सबसे गुफ़्तगू।
गुलशन में खिले फूल लगें जैसे सितारा-
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                         यह मुल्क़....
इस मुल्क़ में बहती सदा गोदावरी-गंगा,।
मेहनतकशों के रंग में यह देश है रँगा।
खेतों में हिंदुस्तान के जीवन की है धारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                         यह मुल्क़....
आपस में नहीं जंग यहां नहीं दुश्मनी,
हिन्दू-मुसलमां-सिख-इसाई में है बनी।
चारो-तरफ़ इंसानियत का मस्त नज़ारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                          यह मुल्क़....
इसके लिये हम खून-पसीना बहायेंगे ,
मर जायेंगे,मिट जायेंगे, ना सिर झुकायेंगे।
एक बार छक गये हैं ना छकेंगे दोबारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                          यह मुल्क़....।।

Tuesday, January 22, 2019

हार से जीत से...


हार से जीत से कुछ न लेना हमें,
बस लगन चाहिए ज़िन्दगी के लिए।
देख,काशी में काबा में रखा है क्या-
बस किशन चाहिए वन्दगी के लिए।।
           है ये दुनिया का कितना बड़ा दायरा!
           इक से इक बढ़ के दौलत नशीं हैं यहां।
           पर हमारा न दौलत से नाता कोई -
           बस किरन चाहिए रौशनी के लिए।।
कुछ को शोहरत की रहती यहां लालसा,
कुछ को रहता नशा यार-दिलदार का।
हमको चहिये न दुनिया की कोई खुशी-
बस सनम चाहिए हर खुशी के लिए।।
          लोग दुनिया के अपनों में मशगूल हैं,
          चैन-अम्नो-ख़ुशी से ये महरूम हैं।
          मर मिटे दूसरों पर ये सीखा नहीं-
          बस,करन, चाहिए बानगी के लिए।।
लाख कोशिश किया हमने सुलझाने की,
ज़िन्दगी उलझनों में उलझती गयी।
उलझनों से न कोई बचा है यहां-
बस,मनन,चाहिए रुख़्सती के लिए।।
         चैन चित में नहीं,चैन दिल में नहीं,
         लगते बाहर से केवल वो जानो सुखी।
          वाह्य आडम्बरों से जो नफ़रत करे-
          बस वो मन चाहिए सादगी के लिए।।
सबके महले-दोमहले बहुत हैं यहां,,
पर जो देखा तो कोई नहीं है सुखी।
लोग रहते हर इक पल परेशान यहां-
बस,लगन, चाहिए ज़िन्दगी के लिए।।

बाँसुरी बेसुरी...


बाँसुरी बेसुरी हो गयी है।
पंखुरी खुरदुरी हो गयी है।।
         ऐसी घड़ियाँ न थीं कभी पहले,
         ऐसी बातें न थीं कभी  पहले।
          बात कैंची-छुरी हो गयी है।।
                           बाँसुरी बेसुरी...
प्रेम के बोल थे तब सुहावन,
नाते-रिश्ते भी थे बहु  लुभावन
दोस्ती अब बुरी हो गयी है।।
                बाँसुरी बेसुरी....
आबो-हवा से सँवरती थी सेहत,
करती नफ़रत कभी ना थी कुदरत।
अब वही आसुरी हो गयी है।।
                  बाँसुरी बेसुरी....
आस्था की शिला की वो मूरत,
जिसकी मजबूत थी हर परत।
रेत सी भुरभुरी हो गयी है।।
                  बाँसुरी बेसुरी....
ठोस थी नीवं इल्मो-हुनर की,
अपनी तहज़ीब की ,हर चलन की।
आज वो बेधुरी हो गई है।।
                  बाँसुरी बेसुरी....
अपनी धरती जो थी स्वर्ग जैसी,
पाप बोझिल जहन्नुम-नरक की-
अब मुक़म्मल पुरी हो गयी है।।
                बाँसुरी बेसुरी....
हो जाती थी नम आँख जो तब,
ग़ैर की हर ख़ुशी-ग़म में वो अब-
किस क़दर कुरकुरी हो गयी है।।
                    बाँसुरी बेसुरी....

गांधी तुझे...


गांधी तुझे सलाम तेरे नौनिहालों का,                     
कमाल का तू जबाब सारे सवालों का।।
        दुनिया को जो ठगे थे,
        अपनी गन्दी चालों से।
        ऐसे गुमानी गोरे  जो,
         अपनी  कुचालों  से।
विधिवत दिया सबक उन्हें अपने ख़यालों का।।
                               गांधी तुझे....
         क्रांति का जबाब तूने,
         शांति  से  दिया।
         पनाह शोषितों को बिना,
         भ्रांति  के  दिया।
तोड़ा ग़ुरूर तूने सारे  भुवालों  का ।।
                              गांधी तुझे....
         लगता बहुत अजीब कि,
          तू  है कोई  मानव।
          कृषकाय तू भले रहे,
          देखा नहीं  पराभव ।।
बन गए इतिहास कञ्चन अपनी मिसालों का।।
                             गांधी तुझे....
          इंद्र के घमण्ड का,
          तू  कृष्ण रूप हो।
           पाप के विनाश का,
           तू विष्णु रूप  हो।
तू ही अमोघ औषधि जग के बवालों  का ।।
                           गांधी तुझे....
          बढ़ता है पाप जब-जब,
         धरती पे  चारो- ओर।
         कराहती है  सभ्यता,
         ममता  चुराये  चोर।
होता जनम यहाँ पे तुम्हारे जैसे वालों का।।
                          गांधी तुझे....
          शत-शत नमन  तुम्हें,
          विराट-दिव्य  रूप!
          अस्थि-मांस-पिंजर,
           हे देव के स्वरूप!
श्रद्धा-सुमन स्वीकारो तू आज  अपने लालों का।।
                        गांधी तुझे सलाम....।।

व्यक्ति नहीं पूजा जाता...



व्यक्ति नहीं पूजा जाता,
पूजा जाता है व्यक्तित्व-
व्यक्ति तो हाड़-मांस का एक पुतला होता है,
जिसकी नियति है गल जाना-सड़ जाना-पूर्ण रूपेण
समाप्त हो जाना।
अमरत्व,दैवत्व की श्रेणी में आता है व्यक्तित्व-
कल था-आज है-
और कल भी रहेगा।
व्यक्ति की उपादेयता उसके व्यक्तित्व से होती है।
सुन्दर-स्वस्थ-हट्टा-कट्टा वह भले ही हो-
पर,मर्यादा विहीन गठीला बदन किसी भी-
काम का नहीं।
राम-कृष्ण-बुद्ध-ईसामसीह-मोहम्मद मात्र-
नाम और व्यक्ति ही नहीं-मूल्यों-आदर्शों एवम
मर्यादाओं के प्रतीक उदात्त व्यक्तित्व हैं।
बाधाएं-रोड़े-अनअपेक्षित घटनायें राह की
बाधक नहीं हो सकतीं-
चेत लक्ष्य अथवा ध्येय पक्का  हो।
कठिनाइयां तो आएंगीं-अपना काम करेंगीं।
हमें भी अपना काम करना है।
  कठिनाइयों से लड़ना है।
स्थापित करना है मूल्यों को,मर्यादाओं को।
 टूटना नहीं-बिखरना नहीं-मुड़ना नहीं-
बस,चलते ही रहना है-चलते ही रहना है -
        चलते ही रहना है।।

रिम-झिम....



रिम-झिम पड़ेला फुहार सवनवां त आय गईलें सखिया,
पेड़वा पे झुलेला झलुवा त दिलवा रसाय गईलें सखिया।।
                        पुरुवा के झोकवा से आवेले बयरिया,
                        पनिया के बूँदवा में टिके ना नजरिया।
                        त मनवाँ में उठै ले कसकिया-
                        सावरिया भुलाय गईलें सखिया।।
                                         रिम-झिम....
काले-काले बदरन कै छटा हौ निराली,
बिजुरी ज चमके त भागूँ हाली-हाली।
बिरहा के अगिया से जली मोरि-
सरीरिया कुम्हिलाय गईलें सखिया।।
                                        रिम-झिम....
एको पल सोवूं नाही, जागूँ सारी रतिया,
का करूँ रामा हमरे आवे नाही बतिया।
त हथवा कै गिनीला अँगुरिया-
रतिया अपार भईली सखिया।।
                                        रिम-झिम....।।

Thursday, January 10, 2019

बच्चा यहां...


हर बच्चा यहां महान है,
हर लड़की यहां की सीता-
हर लड़का यहां का राम है।।
                  बच्चा यहां....
हर बच्चा वचन है गीता का,
हर बच्चा धरम है ईसा का
इसमें मज़हब का भेद नहीं,
गोरे-काले का वेष नहीं।
हर बच्चा यहां रामायन-
हर बच्चा यहां कोरान है।।
                 बच्चा यहां....
इसको दुनिया से क्या लेना,
बस प्यार भरी मुस्की देना।
इसका सबसे रिश्ता है,
धरती का यही फरिश्ता है।
यह दौलत है हर मां की-
हर वालिद की शान है।।
          बच्चा यहां....
बच्चा जग का नूर है,
हर रंजोगम से दूर है।
लगता प्यार का भूखा ये,
नहीं किसी से रूठा ये।
यह चन्दा है हम सबका-
सूरज औ भगवान है।।
        बच्चा यहां महान है।।

Saturday, January 5, 2019

पंछी दरख़्त छोड़ के...


पंछी दरख़्त छोड़ के खम्भों पे आ गए,
बदले मिजाज़-ए-मौसम में उन्हें तार भा गए।
कूड़े के इस पहाड़ पे वे उड़-उड़ के यूँ फिरें-
मानो कि ज़िन्दगी का वे सामान पा गए।।
             पंछी दरख़्त छोड़ के....।
जंगल इमारतों के फैले हैं इस क़दर,
कि बेज़ार हो परिन्दे उड़ते  तितर- बितर।
बिन ठौर औ ठिकाने के करते भला वो क्या-
आफ़त-विपति के बादल उनपे यूँ छा गए।।
              पंछी दरख़्त छोड़ के....।
लीलतीं हैं सड़कें अब खेतों औ जंगलों को,
लूटती है दुनिया पशु-पंछि-स्थलों को।
आने लगे हैं गांवों में अब बाघ औ हिरन-।
लेने को अपना हक़ जो इंसान खा गए।।
               पंछी दरख़्त छोड़ के....।
ख़ुमार क्रूरता का लोगों पे चढ़ रहा,
अत्याचार जानवरों पे बेशुमार बढ़ रहा।
पर्यावरण की शुद्धता पशु-पंछियों से है-
प्राकृतिक प्रकोप में तो कुनबे समा गए।।
                 पंछी दरख़्त छोड़ के....।
नदियाँ-दरख़्त-पर्वत-झीलें हैं ज़िन्दगी,
पूजा करो प्रकृति की पावोगे हर खुशी
करना नहीं क़ुदरत से कभी बेवजह की छेड़-छाड़-
क़ुदरत का ही तो क्रोध सुनामी को ढा गए।।
                  पंछी दरख़्त छोड़ के....।
जंगल अमूल्य निधि है, औषधि अमोघ है,
नदियों का जल है अमरित, पावन सुभोग है।
चाहिए इन्हें समझना बस देव का प्रसाद -
धरती पे इस प्रसाद को ईश्वर बसा गए।।
                   पंछी दरख़्त छोड़ के....।

झूमते हैं भौंरे...


झूमते हैं भौंरे कलियों  को देख कर।
फूलों के तन से टपके पसीना यूँ तरबतर।।
        झरनों की थिरकनों से दिल होता बाग-बाग।
        लगती उन्हें है ठोकर,गिरते हैं दर-ब-दर।।
कोयल की मीठी बोली लगती बड़ी सुहानी।
काली निशा से निकले,रवि-रश्मि बनके रहबर।।
       विश्वास-आस्था से बढ़ कर नहीं है कुछ भी।
       होती नहीं तसल्ली,दिल में किसी को ठग कर।।
छोटा ही सा बीजांकुर बनता विशाल तरुवर।
संघर्ष से ही जीवन,होता है प्यारे बेहतर।।
       लेती है इम्तिहान हरदम पग-पग पे ज़िन्दगी।
       डट कर करो मुक़ाबला,कस-कस के ख़ुद कमर।।
ख़ुद के लिए जो जीता जीना नहीं है उसका।
पत्थर भी खा के देता,मीठा ही फल ये तरुवर।।