Wednesday, May 8, 2019

टूटता हुआ नभ का तारा नहीं...



टूटता हुआ नभ का तारा नहीं,
मायूस हो,ग़म का मारा नहीं।
मेरा मन तो पंछी जो उड़ता फिरे-
बांटता दर्दे दुनिया,आवारा नहीं।।
      जा के गाँवों -सिवानों में घूमे-फिरे,
      पेड़-पौधों की भाषा को समझा करे।
       कह दे,नदिया की धारा को पहचान कर-
       ज़िन्दगी जीत है,कभी हारा नहीं।।
जश्न हैं ग़म-खुशी दोनों इसके लिए,
रिश्ता-याराना सुख और दुख से भी है।
मील के पत्थरों को ये गिनता नहीं-
चल दिया,मुड़ के पीछे निहारा नहीं।।
       चाँदनी की उजाले भरी रात हो,
       या अमावस का गाढ़ा अँधेरा रहे।
       लक्ष्य साधे बिना ये तो लौटे नहीं-
       लक्ष्य इसका,नदी का किनारा नहीं।।
सफलता-विफलता को समझे बिना,
लाभ औ हानि का क्या गुणा- भाग है?
मन मेरा कर्म करता सदा ही रहे-
कर्म-फल लक्ष्य इसका तो सारा नहीं।।
      ऐसा भी नहीं कि कभी थकता नहीं,
      देवता भी नहीं जो सिसकता नहीं।
  थकना-सिसकना है फ़ितरत में इसकी-
ये मरता तो है, कभी मारा  नहीं ।।
    मकसदे ज़िन्दगी तो रहम करना है,
    मज़लूम की ही मदद करना  है।
    होती दीनों की सेवा ही शाने ख़ुदा-
    जन्म लेना हो शायद दोबारा नहीं।।

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