Friday, May 10, 2019

चाहे हो नव-रात्रि...


चाहे हो नव-रात्रि भी ,हो चाहे रमजान।
नहीं बड़ा मतदान से,और दूसरा दान।।
लोक-तन्त्र का पर्व यह,राजनीति-आधार।
देकर अपना मत सभी,करो देश-उद्धार।।
     बात बढ़ाने से बढ़े, घटे मान-सम्मान।
     होकर के सब एक मत,करो राष्ट्र-उत्थान।।
     महाघोष अब हो चुका,करो न हल्ला-शोर।
     जाके पोलिंग-बूथ पे,अब अजमाओ जोर।।
कौवा कौन सियार है,मोर कौन है हंस।
तुरत पता लग जायगा, कृष्ण कौन है कंस।।
तू-तू,मैं-मैं छोड़ के,करो सभी संघर्ष।
प्रबल तन्त्र निर्मित करो,करो मनुज-उत्कर्ष।।
      प्रबल तन्त्र-सरकार जब,करेगी अपना काम।
      बढ़ेगा गौरव राष्ट्र का,राष्ट्र तीर्थ औ धाम।।
     भारत की गरिमा समझ,समझ वतन की आन।
     जननायक-सेवक करें,सेवा-कर्म महान ।।
सब सैनिक हैं राष्ट्र के,राष्ट्र-सुरक्षा धर्म।
प्राण-समर्पण राष्ट्र-हित,है उद्देश्य सुकर्म।।
जन्म-भूमि,जननी दोऊ, स्वर्ग से उत्तम होंय।
एक जन्म देती हमें,दूजी अन्न व तोय ।।

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