उनके होंठो पे तबस्सुम,
या खुदा ! क्या नूर था !
इक परी के रूप का -
सुरुर ही सुरूर था ।
निष्कपट चितवन,चपल,
भोली अदा-स्वर्णाभ तन।
कोमल कपोल की सुर्ख़ियों में-
हुस्न बेग़रूर था ।।
उस रोज़ उनका मेरे घर,
आना हुआ जब दफ्फ़तन ।
सजदा किया दिल झुक गया-
जो अबतलक मग़रूर था ।।
जी में आया उनसे अब मैं,
क्या कहूँ-क्या ना कहूँ ।
कह दूँ क्या मैं लुट गया-
कि मेरा क्या क़ुसूर था ।।
चाँद रोशन आसमां में,
दामिनी दमके जहाँ ।
जो पलक झपके ही दमका-
वो बदन भर-पूर था।।
या खुदा !क्या नूर था ।।
No comments:
Post a Comment