लगती है घर में आग जब,घर के चिराग से,
कुदरत का है जवाब समझो,इतेफाक़ से ।।
होती है उलझनों से जब परेशान ज़िन्दगी,
आता है कोई फरिश्ता,देखो,तपाक से ।।
महबूब का मरना,भला,इसका है क्या गिला,
ऐसी फ़िज़ूल बात को,निकालो दिमाग से ।।
करनी पड़ेगी लाख जतन,बेदाग़ रह सको,
वरना,बचा सका न कोई,दामन को दाग से ।।
मिलते हैं सुर से सुर तभी,जब दिल से दिल मिले,
रोशन ये ज़िन्दगी है मुहब्बत की आग से ।।
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