Sunday, January 29, 2012

निगाहे उल्फ़त

जब से निगाहे उल्फ़त डाली है आपने,
लगे, चाँद बस गया हो ज़मीं के मकान में ।।
अम्बर की किस परी से कहाँ कम जनाब हैं,
गर है कोई जहाँ में तो बस आप-आप हैं ।
महका दिया फ़जां को चेहरा गुलाब ने ।।
जब से निगाहे .... ।।

हर एक अदा तो आपकी शायर का ख्व़ाब है,
मिल जाये सबक प्यार का तूँ वो किताब है ।
लब को सिखाया गाना खिलते शबाब ने ।।
जब से निगाहे .... ।।

सूना था मन का मंदिर सदियों से बिन तिहारे,
बिन देवता के सजदा किसको करे पुजारी ।
रोशन किया ये महफ़िल दमकते चराग़ ने ।।
जब से निगाहे .... ।।

उजड़े मेरे चमन की बहाराँ हुज़ूर हैं,
धरती पे आसमाँ की, जन्नत की हूर हैं ।
खुशबू है दी खिज़ां को मल्काये बहार ने ।।
जब से निगाहे .... ।।
 

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