यश-रश्मि फैले तेरी शशि,धवल की तरह।।
लेकर के ताप सूरज से हो जाओ तू प्रखर।
होवे चरित्र निर्मल-स्वच्छ,जल की तरह।।
पर्वत से सीख ले के तू हो जाओ अब अडिग।
डगमग न सोच होवे दल,बदल की तरह ।।
खग-वृंद से तू सीखना मिश्री -मधुर सी बोली।
वाणी मधुर ही होती मधु,तरल की तरह ।।
होते हैं पुष्प प्यारे बहु, दिल को लुभाने वाले।
स्वांसों में भर लो गन्ध पवन,सरल की तरह।।
कपटी हृदय का मान तो होता नहीं है जग में।
है कपटी हृदय कलश इक, गरल की तरह ।।
मानव की सोच होनी अति उदार चाहिये।
होता हृदय विशाल इक ग़ज़ल की तरह ।।
यश-रश्मि फैले तेरी शशि,धवल की तरह।।
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