Friday, May 10, 2019

होती है सुबह हर रात की...



होती है सुबह हर रात की,
जब अंधियारा होता है।
तम का सीना फाड़ उगे जो,उजियारा होता है।।
कली फूल बन कर महके है,
गली-गली-कूचे में।
ढुरे पवन हो मस्त गन्ध ले,
रह-रह राह समूचे में।
खेल-तमाशा क़ुदरत का,अजब नज़ारा होता है।।
बूँद-बूँद से भरता सागर,
जो अमूल्य मोती देता।
दे कर जल-अमृत जीवन को,
कोई शुल्क नहीं लेता।
सिन्धु,सृष्टि का सम्बल -सुदृढ़ सहारा होता है।।
हरे-भरे खलिहान-खेत,
होते प्रमाण मेहनत के।
यही ख़ज़ाने-सतत स्रोत,
उपहार हैं होते क़ुदरत के।
बन्धु,परिश्रम ही जीवन का,धन सारा होता है।।
सुख-दुख तो जीवन-साथी,
जो आते-जाते हैं।
इनका स्वागत करे मुदित जो,
इतिहास बनाते हैं।
विरह-वेदना-पीड़ित केवल,नदी-किनारा होता है।।
जागो-उठो बिना भ्रम समझो,
टेढ़ी चाल समय की।
कहो अलविदा तुरत निशा को,
जो थी अभी प्रलय की।
समझ न पाया जो रहस्य यह,कष्ट का मारा होता है।।
तम का सीना फाड़ उगे जो,उजियारा होता है।।

1 comment:

  1. बन्धु परिश्रम ही जीवन का,धन सारा होता है....
    शानदार रचना!कोटिशः प्रणाम!

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