Thursday, May 9, 2019

फूलों से सबक ले लो तू अभी...



फूलों से सबक ले लो तू अभी,
फूलों में ग़ज़ब नरमाई है।
शाम -सवेरे देखा करो,इनकी अनुपम सुघराई है।।
भोरों की भनक,कलियों की महक,
मन भावन और सुहावन है।
दिन-रात तितिलियाँ बहुरंगी,पा लेता चमन अंगड़ाई है।।
हर शाम-सवेरे खग-कलरव,
सुन-सुन मन-पीड़ा जाती है।
फागुन की पीली चादर में,
धरती युवती बहु भाती है।
मधुमास का आलम चारो तरफ,
लगता जीवन-संचार करे-
कल-कल सरिता की धारा में,पलता जीवन सुखदायी है।।-सूरज-चाँद-सितारे सभी,
लगते अत्यन्त निराले हैं।
अम्बर के दीप-प्रकाश सभी,
जीवन-ज्योति उजाले हैं।
स्वच्छ-सुगन्धित बहता पवन,।
करता है दूर थकान सतत-
खेतों में,बाग-बगीचों में,छायी मोहक तरुणाई है।।
गावँ की गोरी मटक-मटक,
आँचल में छुपाये प्यार चले।
प्रियतम-प्रेमी की याद में उसका,
चंचल जियरा मचले -मचले।
उड़-उड़ के पवन-प्रवाह से पल्लू,
अल्लढता दर्शाता है -
पाजेब की रुन-झुन सुन के लगे,कहीं दूर बजे शहनाई है।।
सतत प्रवाहित झरनें झर-झर,
अनुपम संगीत सुनाते हैं।
शिला-खण्ड से घायल जल-कण,
संघर्ष-गीत नित गाते हैं।
हर-पल देती रहती क़ुदरत,
जीवन-सन्देश निराला हमें-
जीवन के हर मोड़ पे देखो,क़ुदरत की अगुवायी है।।
राम-रहीम में फर्क नहीं,
नहिं ईसा और कन्हाई में।
हर देश की धरती अन्न उगलती,
प्राणी की ही भलाई में।
अग्नि-वायु-जल-क्षितिज नहीं,
करते हैं कोई भेद कभी-
लुका-छुपी क़ुदरत से करना,सदा रहा दुखदायी है।।
कल-कल सरिता की धारा में,पलता जीवन सुखदायी है।।

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