Monday, May 6, 2019

पग में लगे जो ठोकर...



पग में लगे जो ठोकर, आहें कभी न भरना।
बेगैरतों की कृत्यों को,होते कभी न सहना,
होगी बड़ी तौहीनी,इस मादरे वतन की-
दुश्मन के सामने,मस्तक का तेरे झुकना।।
     फ़र्ज़ अपनी माटी का,तुम भूलना  नहीं,
     सम्बन्ध दीप-बाती का,तुम तोड़ना नहीं।
    तुम ही गुरूरे मुल्क़,शाने वतन तुम्ही हो-
    होती है फ़ख़् की बात,माटी की ख़ातिर मिटना।।
होते अमन-पसन्द न कुछ,सियासत के चाटुकार,
है असभ्य उनकी भाषा,नापाक हैं  विचार।
वे चाहते हैं टुकड़े-टुकड़े वतन का  करना-
ऐसे ही सिरफिरों से,बच के ज़रा ही रहना।।
    हम रह के क्या करेंगे,यदि देश ना रहेगा?
    जब लुट गयी हो अस्मत,तो कुछ नहीं बचेगा।
    है वक़्त का तकाज़ा,मुट्ठी में इसको कर लो-
    सबसे है पाक़ मज़हब,सेवा वतन की करना।।
चाहे रहें न हम सब,प्यारा वतन रहेगा,
बावास्त-ए-वतन ही,सबका लहू बहेगा।
होगा सफल ये जीवन,तेरा तभी ऐ मित्रों-
समझोगे जब वतन की,माटी को अपना गहना।।
    उत्तर हो चाहे दक्खिन,पूरब हो चाहे पश्चिम,
   हैं हमवतन सभी जन,कोइ तेज हो या मद्धिम।
   सब एक सुर में कहते,सब कुछ वतन हमारा-
  अम्ने वतन की ख़ातिर, जीना हमारा मरना।।

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