ज़िन्दगी में मिले तू मेरे दोस्त यूँ ,
जैसे कश्ती को कोई किनारा मिला।
रहीं ढूंढ़ती जिसको नज़रें मेरी-
अब वही खूबसूरत नज़ारा मिला।।
काली ज़ुल्फ़ें तेरी जैसे काली घटा,
बिंदिया माथे की बिजली की आभा लगे।
तेरे मुखड़े पे रौशन किरन चाँद की-
भटके राही को जैसे सहारा मिला।।
आंख मिलते ही यादों के ताले खुले,
प्यार सदियों पुराना झलकने लगा।
परत-दर-परत मंज़र दिखने लगे-
जैसे खोया अमानत-पिटारा मिला।।
सुर्ख़ होंठों तले तब दबीं रह गईं,
बातें मीठी-पुरानी जो मनुहार की।
सब उभर कर यूँ दिल में उबलने लगीं-
जैसे शोले का कोई अंगारा मिला।।
घड़ी आज की बन तारीख़ी गयी,
नामुमकिन को मुमकिन ख़ुदा ने किया।
मयस्सर न था जिसको दीया कोई-
आज उसको चमकता सितारा मिला।।
चलता रहा मैं अकेला यहाँ,
डगमगाता हुआ,लड़खड़ाता हुआ।
देख कर के तुम्हें दिल ये कहने लगा-
आज कोई तो अपना हमारा मिला।।
गीत गाने लगा, गुनगुनाने लगा,
मन ये मेरा जो रोता रहा रात-दिन।
मिल गया छाँव आँचल का तेरे इसे-
जैसे दुनिया का सुख इसे सारा मिला ।।
आज कोई तो अपना हमारा मिला।।
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