कहा पुष्प ने सुन लो चमन,
हमसे ही वजूद तुम्हारा है।
पा हमसे महक यह जग महके-
वन-बाग़-पहाड़ बहारा है।।
नदी की धारा में खुशबू,
सर्वत्र महक नभ-मण्डल में।
खुशबू ही खुशबू फैली है,
मंज़र में, हर जंगल में।
दिग-दिगन्त सब महक उठा-
क़ुदरत ने हमें निखारा है।।
हम नारी -माथे की शोभा,
हम मन्दिर की शान बने।
हमको सिर पर धारण करके,
स्वर्ग के देव महान बने।
प्रथम प्रेम के हम प्रतीक जो-
परिणय-जीवन-धारा है।।
हम मुरीद हैं सुनो चमन,
बस वीरों-वतन-परस्तों के।
उनपे ही बिछ जाते हैं हम,
जो पथ हैं सब अलमस्तों के।
यद्यपि हम हैं रंग-विरंगे-
पुष्प ही नाम हमारा है।।
सीख हमारी नरमायी औ,
कोमलता का रूप है।
सदविचार-सद्कर्म की खुशबू,
इसका मूल स्वरूप है।
बने सुगन्धित जीवन सबका-
यही पुष्प का नारा है।।
हमसे ही वजूद तुम्हारा है।।
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