राजनीति अब नीति छोड़ के,
खेले खेल है सारा।
तिलक-मालवीय-गांधी-नेहरू,
का करके बटवारा।
जनता रोवे धुवांधार-
भगवन,कैसे सपरी?
डीज़ल औ पेट्रोल की कीमत,
छूए गगन-शिखर को।
नेताजी बहु-बहु समझावें,
समझ न आवे जन को।
होवे ठगी का कारोबार-
भगवन, कैसे सपरी?
कहते हैं मंगल ग्रह पर,
जब होगी अपनी बस्ती।
डीज़ल औ पेट्रोल की बिक्री,
होगी तब अति सस्ती।
जाये यान पवन के पार-
भगवन,कैसे सपरी?
पानी तब अनमोल बिकेगा,
रोटी-दाल औ ओदन।
बिन तरकारी थाल सजेगी,
मदिरा-मिश्रित भोजन।
डूबे नैया बिच मझधार-
भगवन,कैसे सपरी?
बुद्धि-विवेक हीन जन-नायक,
जब-जब हुए जगत में।
तब-तब रोयी मानवता है,
धरती के आंचल में।
बरसे पापों के अंगार-
भगवन,कैसे सपरी?
ईमानदार जननायक सेवक,
मिलता है मुश्किल से।
परोपकार बस ध्येय है उसका,
पूर्ण समर्पित दिल से।
उसका सदा करो सत्कार-
भगवन,ऐसे सपरी।।
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