Sunday, May 5, 2019

गया बसन्त कन्त नहिं आये...


गया बसन्त कन्त नहिं आये,
अब बारी है पतझर की।
मन उदास मत करो राधिके!
धीरज उर में रख कर देखो।
   होगी पुनरावृत्ति प्रीति सँग-तेरे भी नटवर की।।
आना-जाना लगा ही रहता,
इसकी क्या चिन्ता करना?
वर्तमान तो बदलेगा ही,
इसकी यही नियति है।
    आने वाले कल में देखना-झलक मिलेगी प्रियवर की।।
चलो डगर पर, क़दम न गिनना,
होवे भले थकन  भी।
मन्ज़िल हाथ पसारे बढ़ती,
लेकर आस  मिलन की।
   होगी मुदित मंजुला मन्ज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
पथिक प्रगति-पथ पर जब चलता,
नहीं पता उसको लगता।
उसका स्वागत करेगी शीतल,
पवन या अन्धड़ की बेला।
  मन्ज़िल पाकर मिलती राहत-जैसे छाया तरुवर की।।
डगमग नाव खेवैया अनगढ़,
पार नहीं लग पाओगे।
पर सह लहर-थपेड़ों को,
तुम साहिल पे लग जाओगे।
  राह सिखाती स्वयं चाल-गति-अपने राही रहबर की।।
होगी मुदित मंजुला मन्ज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
  टूटी आस तो टूटोगे तुम,
  आशा-दीप जलाये रखना।
  छाये बहु अँधियारा फिर भी,
  यात्रा-पथ पर चलते रहना।
निश्चित आभा उजियारे की-देगी राहत जीवन भर की।।
होगी मुदित मंजुला मन्ज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।

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