अब बारी है पतझर की।
मन उदास मत करो राधिके!
धीरज उर में रख कर देखो।
होगी पुनरावृत्ति प्रीति सँग-तेरे भी नटवर की।।
आना-जाना लगा ही रहता,
इसकी क्या चिन्ता करना?
वर्तमान तो बदलेगा ही,
इसकी यही नियति है।
आने वाले कल में देखना-झलक मिलेगी प्रियवर की।।
चलो डगर पर, क़दम न गिनना,
होवे भले थकन भी।
मन्ज़िल हाथ पसारे बढ़ती,
लेकर आस मिलन की।
होगी मुदित मंजुला मन्ज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
पथिक प्रगति-पथ पर जब चलता,
नहीं पता उसको लगता।
उसका स्वागत करेगी शीतल,
पवन या अन्धड़ की बेला।
मन्ज़िल पाकर मिलती राहत-जैसे छाया तरुवर की।।
डगमग नाव खेवैया अनगढ़,
पार नहीं लग पाओगे।
पर सह लहर-थपेड़ों को,
तुम साहिल पे लग जाओगे।
राह सिखाती स्वयं चाल-गति-अपने राही रहबर की।।
होगी मुदित मंजुला मन्ज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
टूटी आस तो टूटोगे तुम,
आशा-दीप जलाये रखना।
छाये बहु अँधियारा फिर भी,
यात्रा-पथ पर चलते रहना।
निश्चित आभा उजियारे की-देगी राहत जीवन भर की।।
होगी मुदित मंजुला मन्ज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
No comments:
Post a Comment