Friday, May 31, 2019

किसी फूल को ख़बर क्या...



किसी फूल को ख़बर क्या,
वो कल कहाँ रहेगा?
किसी देवता के सिर पर-
या कब्र पर चढ़ेगा।।
      आज का ये अर्जुन,
      कल बन न जाये शकुनी।
      कृष्णोपदेश लेकर-
       नहिं युद्ध वो लड़ेगा।।
तरकश से वाण निकले,
भेदे न लक्ष्य अपना।
साधक भ्रमित हुआ तो-
नहिं लक्ष्य तक बढ़ेगा।।
        उद्देश्य यदि हो सार्थक,
        उद्यम नहीं निरर्थक।
        उत्साह युक्त मानव-
         खतरों से क्या डरेगा!!
जलता रहे यहाँ यदि,
आशा का दीप हरदम।
तो वायु-तीब्रता का-
नहिं जोर कुछ चलेगा।।
          डग-मग भँवर में नैया,
          यदि दक्ष हो खेवैया।
          लहरों के घात सह कर-
           साहिल पे आ टिकेगा।।
धीरज-विवेक दोनों,
यदि साथ हैं तुम्हारे।
संकट पथिक तुम्हारा-
निश्चित,सुनो,कटेगा।।

Monday, May 27, 2019

भगवन,कैसे सपरी?



राजनीति अब नीति छोड़ के,
खेले खेल है सारा।
तिलक-मालवीय-गांधी-नेहरू,
का करके बटवारा।
जनता रोवे धुवांधार-
            भगवन,कैसे सपरी?
डीज़ल औ पेट्रोल की कीमत,
छूए गगन-शिखर को।
नेताजी बहु-बहु समझावें,
समझ न आवे जन को।
होवे ठगी का कारोबार-
          भगवन, कैसे सपरी?
कहते हैं मंगल ग्रह पर,
जब होगी अपनी बस्ती।
डीज़ल औ पेट्रोल की बिक्री,
होगी तब अति सस्ती।
जाये यान पवन के पार-
         भगवन,कैसे सपरी?
पानी तब अनमोल बिकेगा,
रोटी-दाल औ ओदन।
बिन तरकारी थाल सजेगी,
मदिरा-मिश्रित भोजन।
डूबे नैया बिच मझधार-
        भगवन,कैसे सपरी?
बुद्धि-विवेक हीन जन-नायक,
जब-जब हुए जगत में।
तब-तब रोयी मानवता है,
धरती के आंचल में।
बरसे पापों के अंगार-
         भगवन,कैसे सपरी?
ईमानदार जननायक सेवक,
मिलता है मुश्किल से।
परोपकार बस ध्येय है उसका,
पूर्ण समर्पित दिल से।
उसका सदा करो सत्कार- 
         भगवन,ऐसे सपरी।।

मनवाँ रे!...



मनवाँ रे!तोरा मरम न जाने कोय।।
कबहुँ उड़े चंचल खग जैसा,पलक झपे कहुँ खोय।
थकित,श्रान्त,बोझिल हो कबहूँ नीड़हि अपुने सोय ।।
                 मनवाँ रे!....
कबहुँ भोग तोहें अति भावे,कबहुँ योग में तू रम जाये।
इत-उत भरमे भ्रमित भ्रमर इव,भरम दूर नहि होय।।
            मनवाँ रे!....
कोउ कहे तू जीत है एक पल,कोउ कहे तू हार।
हार-जीत सब तेरी माया और नहीं कछु  होय।।
          मनवाँ रे!....
पाप-पुन्य के तुमही दाता, यश-अपयश की राह दिखाता।
तू जो जागे जीत जगत में, हार मिले जो सोय ।।
          मनवाँ रे!....
काया-स्वामी मन कहलाये,सबको नाच नचाये।
पल-छिन नाचे स्वयं ये मनवाँ,नहीं कछू अब गोय।।
    मनवाँ रे!तोरा मरम न जाने कोय ।।

प्रकृति से कर ले...



प्रकृति से कर ले नेह रे भाई!
वेद,पुराण,ज्ञान,निगमागम यहि मा सबै समायी।
विधि ,हरि,हर,सुर-सार, गिरा,गुरु-गरिमा में है नहायी।।
                            प्रकृति से कर ले...
मन्दिर,मस्ज़िद,गिरजा लखि सच सबने अलख जगायी।
क्षिति,जल,पावक,पवन,अवनि यह जानो यही सचाई।।
                           प्रकृति से कर ले....
प्रकृति ईश है,ईश प्रकृति है यहि मा सकल खुदाई।
प्रकृति छाड़ि जो अरु कछु पूजा बूड़ी सकल कमायी।।
                       प्रकृति से कर ले नेह रे भाई।।

नहीं सताओ...




नहीं सताओ बच्चों को बच्चे होते भगवान हैं।
वेद-बाइबिल-गुरुवाणी ये गीता-शबद-कोरान हैं।।
                             नहीं सताओ....
इतने शीतल,इतने भोले जैसे चन्दा की किरन लगें,
फुदक-फुदक कर भरें कुलाँचे जैसे वन के हिरन लगें।
इनकी तोतली बोली पर हम करते सब क़ुर्बान हैं।।
                           नहीं सताओ....
पानी-आग सभी इनको लगते जीवन के खेल हैं,
शोला-शबनम दोनों का ये करते प्यारा मेल हैं।
बच्चे सच्चे इन्सां के उसूलों की होते पहचान हैं।।
                         नहीं सताओ....
इनके मज़हब में कोई,छोटा नहीं बड़ा होता,
मैं गोरा तू काला, ऐसा कभी न झगड़ा होता।
ऊँचनीच व भेदभाव की दुनिया से अनजान हैं।।
                       नहीं सताओ....
इनमें गांधी,इनमें जवाहर,इनमें ईसा-कृष्ण रहे,
इनमें गुरु गोविंद साहिब-तुलसी-मीरा के वर्ण रहे।
किसी भी देश के होते बच्चे आन-बान औ शान हैं।।
                     नहीं सताओ....।।

कोई किसी का दुनिया में...



कोई किसी का दुनिया में होता नहीं सगा,
अन्तिम घड़ी में रिश्ते,देते हैं सब दगा।
मां-बाप-भाई-भगिनी,होते हैं चार दिन के-
पिंजरे में क़ैद पंछी,हो जाता झट दफ़ा।।
      कलियाँ चमन में खिल के,कुछ पल में बिखरतीं,
      रवि-रश्मियाँ प्रखर भी,हर शाम को ढलतीं।
      हो जातीं दफ़्न सांसें, झट-पट बिना रुके-
      रक्खा जिन्हें था सबने,सीने से यूँ लगा।।
सम्बन्ध अग्नि-जल का,शाश्वत-यथार्थ है,
आकाश औ पवन का,अविरल-अबाध है।
सरिता का जल है मिलता,सागर से जा गले-
निःस्वार्थ प्रेम-रस में,सम्बन्ध यह पगा।।
      बर्फीली चोटियों पे,चन्दा की जो चमक,
      फूलों पे भनभनाते,भौरों की जो भनक।।
      कल थी औ आज है,रहेगी यह सदा-
     कोई नहीं सकेगा,इसको कभी भगा।।
ब्रह्म से अक्षर औ अक्षर से ब्रह्म है
सम्बन्ध यह चिरातन, इसमें न छद्म है।
ब्रह्म को तो केवल,साक्षर ही समझता-
कोई सके ना ब्रह्म के,अस्तित्व को डिगा।।
     सृष्टि के पहले औ न बाद सृष्टि के, 
     न था,न कुछ रहेगा,सिवाय वृष्टि के।
     बस ब्रह्म ही है शाश्वत औ ब्रह्म रहेगा-
     अभिद-अमिट-अक्षत-असुप्त औ जगा।।

Saturday, May 11, 2019

हम सब बच्चे...



हम सब बच्चे अखिल विश्व में,
ज्ञान का दीप जलायेगें।
कर के नाश अविद्या का हम,
शिक्षा-सदन  बसायेंगे।।
       हम सब बच्चे....
ऊँचनीच औ श्वेतश्याम में,
अब न कोई अन्तर होगा।
हमसब बहनें हैं,भाई हैं,
मात्र यही चिंतन होगा।
मानवता का एक धर्म कर-
जग का मान बढ़ायेंगे।।
             हमसब बच्चे....
हमने ऐटम देखे हैं,बम देखे हैं,
ऐटम, बम से प्यार नहीं करते।
है यह दूजा नाम विनाश-प्रलय का,
जल-थल-नभ दूषित करते।
शस्त्र-शास्त्र का कर उन्मूलन-
शांति का पाठ पढ़ायेंगे।।
हमसब बच्चे....
पथ पर काँटे लाख बिछे हों,
मग़र हमें बढ़ते रहना है।
सिर न झुके,उन्नत ललाट कर,
सीना ताने  चलते रहना है।
शत्रु-भाल को रौंद-रौंद कर-
मां की लाज बचायेंगे।।
          हमसब बच्चे....
कर्मठ लाल बहादुर जैसा,
वीर बहादुर छत्रसाल हों।
स्वाभिमान में हों प्रताप हम,
देशभक्त शेखर जैसा।
वतनपरस्ती भगत की लेकर-
गांधीवाद  चलायेंगे।।
          हमसब बच्चे....
जेठ की तपती दोपहरी हो,
या हों पूष की ठंडी रातें।
चहुंदिश गरजे घन-घमण्ड भी,
वर्षों बरषे बरसातें।।
जीवन-पथ पे भ्रमित पथिक को-
हमसब राह दिखायेंगे।।
          हमसब बच्चे....।।

एक गांधी जन्मे...



दो अक्टूबर अपने देश की शान रहा है।
एक गांधी जन्मे दूजा लाल किसान रहा है।।
                 एक गांधी जन्मे....
जब-जब दौरे तूफ़ां भारत पे आया है,
आज़ादी के चन्दा को बादल ने छुपाया है।
तब बादलों में रौशन हिंदुस्तान रहा है।।
              एक गांधी जन्मे....
एक ऐसी घड़ी भी आयी, जब गोरे रंग जमाये,
अपनी रँग-भेदी चालों से मां को बेड़ी पहनाये।
बेड़ी को तोड़ कर गांधी जाहिर जहान रहा है।।
            एक गांधी जन्मे....
नफ़रत की ज्वाला के जब शोले भड़के थे,
इन्सां के लहू के ओले दुनिया पे बरसे थे।
शोलों से बचाया जो वो फ़क़ीर महान रहा है।।
          एक गांधी जन्मे....
जय किसान का लहजा जो हमें सिखाया है,
भारत-माता को हर-पल वो लाल भाया है।
लाल का दूसरा नारा जय जवान रहा है।।
       एक गांधी जन्मे....
भारत-माता की लाज को बच्चों ने बचाया है,
मां की खातिर अश्क़ों को हर-दम बहाया है।
बच्चों में हमारे देश का इन्सान रहा है।।
         एक गांधी जन्मे....।।

राष्ट्र-हितों के लिए...



शक्ति,शांति,ईमान,धरम तो अपना प्यारा नारा है।
राष्ट्र-हितों के लिए तो हमने तन-मन-धन सब वारा है।।
          भारत-भूमि की गरिमा इसकी,
           अति प्राचीन सभ्यता है।
          सागर-निनाद मन-भावन है,
         यहां सम्यक प्रकृति-रम्यता है।
जो सबको सौन्दर्य बोध दे,ऐसा देश हमारा है।।राष्ट्र-हितों...
         सदविचार-सद्कर्म सदा से,
         अपने प्यारे गीत रहे।
         उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम,
         सब तो अपने मीत रहे।
दुश्मन से जो करे मित्रता,वो संस्कार हमारा है।।राष्ट्र-हितों..
         अपना तो इतिहास विश्व में,
         बलिदानों की गाथा है।
         चट्टानों सी शक्ति विदेशी,
         सबने टेका माथा है।
शान्ति-दूत जो अखिल विश्व का,वो इतिहास हमारा है।।राष्ट्र-हितों....
       आवो, मिलकर करें प्रतिज्ञा,
       आन देश की बनी रहे।
       मानव-मूल्य का ह्रास न होवे,
       शान देश की बनी रहे।
हर व्यक्ति समष्टि का सूचक है,कहता क़ानून हमारा है।।
         राष्ट्र-हितों के लिए....।।

मधुर चिंतन-मधुर लेखन...



मधुर चिंतन-मधुर लेखन-मधुर वाणी हमारी है,
मधुरता से अगर जी लो मधुर दुनिया तुम्हारी है।
नहीं शिकवा किसी से हो,नहीं नफ़रत ज़माने से,
फ़साना गर मधुर तेरा,मधुरिमा भी तुम्हारी है।।
                                    मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
बड़ा कोई नहीं होता,कभी भी कद व काठी से,
मधुर ब्यवहार से मित्रों,वो होता सब पे भारी है।
मधुर ममता-मधुर माता मधुर होती मोहब्ब्त,है
जहां में बस इसी कारण,मधुर ममता ही न्यारी है।।
                                 मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
मधुर हो चाल भी जिसकी,चलन भी हो मधुर जिसका,
समझ लो बस चलन ऐसी ही सबको प्राण-प्यारी है।
मधुर रातें-मधुर बातें-मधुर जीवन-मधुर बन्धन।
मधुर जीवन जो जीता है,वही मानव सुखारी है।।
                                 मधुर चिंतन-मधुर लेखन....

नव वर्ष हो...



नव वर्ष हो मंगलमय सबका
सब लोग प्रसन्न व स्वस्थ रहें।
परहित ही लक्ष्य रहे सबका,
मक़सद न रहे खुदगर्जी का।
हो राष्ट्र की सेवा सरवोपरि-
बस यही रवायत बनी रहे।।
             नव वर्ष हो....
नदियों का जल न प्रदूषित हो,
अरु वायु हमेशा स्वच्छ बहे।
हरियाली-वन-रक्षण सबका,
एकमात्र बस लक्ष्य रहे।
आबो-हवा-जलवायु-फ़िज़ा की-
नहीं किफ़ायत बनी रहे।।
         नव वर्ष हो....
फसलें भी हमेंशा उगा करें,
पशु-पक्षी भी अलमस्त रहें।
इस मुल्क़ में अम्नो-चैन रहे,
नहि फिक्र,न मन में मैल रहे।
सब जतन-लगन से कर्म करें-
जन-जन की हिमायत बनी रहे।।
               नव वर्ष हो....
ऋषियों-मुनियों का देश यही,
दुनिया को सिखाया चलोचलन।
नहिं धर्म-द्वेष,नहिं वर्ग-द्वेष,
नहिं रंग-भेद की बात यहां।
नहिं कभी किसी से बैर रहे-
बस रब की इनायत बनी रहे।।
               नव वर्ष हो मंगलमय....

यह मुल्क़ हिंदुस्तान है...



यह मुल्क़ हिंदुस्तान है ये मुल्क़ हमारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।
गांधी-जवाहर-बोस की आंखों का है तारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
          इस मुल्क़ में कोयल सुनाये गीत सुहानी,
          बहती हवा सदा बताये इसकी कहानी।
          सारे जहां का यही रहा सदियों सहारा,
          हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।
                         यह मुल्क़....
इसकी बसन्ती बास में है प्यार की खुशबू,
ऋतुयें तमाम करतीं फिरें सबसे गुफ़्तगू।
गुलशन में खिले फूल लगें जैसे सितारा-
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                         यह मुल्क़....
इस मुल्क़ में बहती सदा गोदावरी-गंगा,।
मेहनतकशों के रंग में यह देश है रँगा।
खेतों में हिंदुस्तान के जीवन की है धारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                         यह मुल्क़....
आपस में नहीं जंग यहां नहीं दुश्मनी,
हिन्दू-मुसलमां-सिख-इसाई में है बनी।
चारो-तरफ़ इंसानियत का मस्त नज़ारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                          यह मुल्क़....
इसके लिये हम खून-पसीना बहायेंगे ,
मर जायेंगे,मिट जायेंगे, ना सिर झुकायेंगे।
एक बार छक गये हैं ना छकेंगे दोबारा,
हमने इसे पल-पल है पसीने से सवांरा।।
                          यह मुल्क़....।।

समझे हमें थे वो...



समझे हमें थे वो कभी गुनहगार की तरह।
बातें हुयीं हैं आज,मग़र यार की तरह।।
         उनके तमाम शिकवे अब काफ़ूर हो गए।
         करते हमारा पीछा यूँ,तलबगार की तरह।।
लोगों से जा के कह दो पालें भरम न मन में।
चुभता भरम है हरदम,इक खार की तरह।।
        होता बड़ा ही नाजुक ये दोस्ती का रिश्ता।
        शक काटता इसे छुरी,धारदार की तरह।।
लाखों-करोड़ों जानें बच जायेंगी यहां।
यदि पूज्य होवे इश्क़,परवरदिगार की तरह।।
       ईश्वर में और इश्क़ में होता नहीं है अन्तर।
       हैं दोनों पूज्य सबके,ब्रह्म-सार की  तरह।।
ईमां-धरम को रखना यारों सम्हाल के।
हैं ज़िन्दगी के गहने ये,सद्विचार की तरह।।

खिलते रहो जहां में तू...



खिलते रहो जहां में तू,कमल की तरह।
यश-रश्मि फैले तेरी शशि,धवल की तरह।।
       लेकर के ताप सूरज से हो जाओ तू प्रखर।
       होवे चरित्र निर्मल-स्वच्छ,जल की  तरह।।
पर्वत से सीख ले के तू हो जाओ अब अडिग।
डगमग न सोच होवे दल,बदल  की तरह ।।
       खग-वृंद से तू सीखना मिश्री -मधुर सी बोली।
        वाणी मधुर ही होती मधु,तरल की  तरह ।।
होते हैं पुष्प प्यारे बहु, दिल को लुभाने वाले।
स्वांसों में भर लो गन्ध पवन,सरल की  तरह।।
       कपटी हृदय का मान तो होता नहीं है जग में।
       है कपटी हृदय कलश इक, गरल की तरह ।।
मानव की सोच होनी अति उदार चाहिये।
होता हृदय विशाल इक ग़ज़ल की तरह ।।
     यश-रश्मि फैले तेरी शशि,धवल की तरह।।

हमें महफ़ूज़...



न फूलों का चमन उजड़े,सजर उजड़े,न वन उजड़े।
न उजड़े आशियां पशु-पंछियों  का-
हमें महफ़ूज़ रखना है ,जो बहता जल है नदियों का।।
          रहें महफ़ूज़ खुशबू से महकती वादियाँ अपनी,
          सुखी-समृद्ध खुशियों से चहकतीं घाटियाँ अपनी।
          रहें वो ग्लेशियर भी नित जो है जलस्रोत सदियों का
                                        हमें महफ़ूज़....।।
हवा जो प्राण रक्षक है,हमारी सांस में घुलती,
इशारे पे ही क़ुदरत के,सदा चारो तरफ बहती।
रखना इसे महफ़ूज़ उससे ,जो है मलबा गलियों का-
                                        हमें महफ़ूज़....।।
        नहीं भाती   छलावे-छद्म की भाषा इस कुदरत को,
       समझ आती महज़ इक प्यार की भाषा इस कुदरत को।
       यही है ज्ञान का मख्तब,कल्पना-लोक कवियों का-
                                        हमें महफ़ूज़....।।
नज़ारे सारे कुदरत के यहाँ संजीवनी जग की,
हिफ़ाज़त इनकी करने से हिफ़ाज़त होगी हम सबकी।
सदा कुदरत से होता है सुखी जीवन भी दुखियों का-
                                        हमें महफ़ूज़....।।
     सितारे-चाँद-सूरज से रहे रौशन फ़लक प्रतिपल,
    न आये ज़लज़ला कोई,मिटाने ज़िन्दगी के पल।
    महज़ सपना यही रहता है,सूफ़ी-सन्त-मुनियों का-
                                        हमें महफ़ूज़....।।
जमीं का पेड़ जीवन है लता या पुष्प-वन-उपवन,
धरोहर हैं धरा की ये ,सभी पर्वत-चमन-गुलशन।
प्रकृति ही देवता समझो,प्रकृति ही देश परियों का-
                                        हमें महफ़ूज़...।।
   पहन गहना गुलों का ये ज़मीं महके तो बेहतर है,
  समय-सुर-ताल पे बादल यहाँ बरसे तो बेहतर है।
  प्रदूषण मुक्त हो दुनिया,बने सुख-धाम छवियों का-
                                        हमें महफ़ूज़ रखना है....।।

अरुझि गइलें नैना...



अरुझि गइलें नैना हमार ओनसे रतियाँ।
चौदह बरिस तक त कछु नाहीं जनली-
सोरह बरिस पे समुझि गइली बतिया
                             अरुझि गइलें....
खेलै-खेल में मेल बढ़त गइल।
मेलै -मेल में खेल चलत रहिल-
यही बीच कतहूँ हेराय गइल नथिया।।
                            अरुझि गइलें....
ओनकी पहल पे महल ओनके गइली।
ऊ कछु चाहे पर हम नाहीं चहली-
कइके जतनिया बचाय लेहली थतिया।।
                           अरुझि गइलें....
अइसही जिनिगिया में आवे तुफनवा।
झट-पट में खेलवा बिगाड़े तुफनवा-
डोलै लागै मनवाँ जस पिपरा कै पतिया।।
                         अरुझि गइलें....
पंडित-पुजारी कै इहै बा सनेसवा,
काबू में कइले रहा आपुन ई चितवा-
कबहूँ न मिलि पाई खोइल इजतिया।।
                       अरुझि गइलें....
लूटि जाई गठरी त फूटि जाई किस्मत।
लोग-बाग हँसिहैं जब चलि जाई अस्मत-
लौटि नाहीं अस्मत चाहे पीटी डारा छतिया।।
                      अरुझि गइलें......
अपनै करमवा त होवै चरितवा।
नीके करमवा से जियरा हरित वा -
कै दा हरित तनिका आपुन धरतिया।।
                   अरुझि गइलें नैना....।।

Friday, May 10, 2019

होती है सुबह हर रात की...



होती है सुबह हर रात की,
जब अंधियारा होता है।
तम का सीना फाड़ उगे जो,उजियारा होता है।।
कली फूल बन कर महके है,
गली-गली-कूचे में।
ढुरे पवन हो मस्त गन्ध ले,
रह-रह राह समूचे में।
खेल-तमाशा क़ुदरत का,अजब नज़ारा होता है।।
बूँद-बूँद से भरता सागर,
जो अमूल्य मोती देता।
दे कर जल-अमृत जीवन को,
कोई शुल्क नहीं लेता।
सिन्धु,सृष्टि का सम्बल -सुदृढ़ सहारा होता है।।
हरे-भरे खलिहान-खेत,
होते प्रमाण मेहनत के।
यही ख़ज़ाने-सतत स्रोत,
उपहार हैं होते क़ुदरत के।
बन्धु,परिश्रम ही जीवन का,धन सारा होता है।।
सुख-दुख तो जीवन-साथी,
जो आते-जाते हैं।
इनका स्वागत करे मुदित जो,
इतिहास बनाते हैं।
विरह-वेदना-पीड़ित केवल,नदी-किनारा होता है।।
जागो-उठो बिना भ्रम समझो,
टेढ़ी चाल समय की।
कहो अलविदा तुरत निशा को,
जो थी अभी प्रलय की।
समझ न पाया जो रहस्य यह,कष्ट का मारा होता है।।
तम का सीना फाड़ उगे जो,उजियारा होता है।।

चाहे हो नव-रात्रि...


चाहे हो नव-रात्रि भी ,हो चाहे रमजान।
नहीं बड़ा मतदान से,और दूसरा दान।।
लोक-तन्त्र का पर्व यह,राजनीति-आधार।
देकर अपना मत सभी,करो देश-उद्धार।।
     बात बढ़ाने से बढ़े, घटे मान-सम्मान।
     होकर के सब एक मत,करो राष्ट्र-उत्थान।।
     महाघोष अब हो चुका,करो न हल्ला-शोर।
     जाके पोलिंग-बूथ पे,अब अजमाओ जोर।।
कौवा कौन सियार है,मोर कौन है हंस।
तुरत पता लग जायगा, कृष्ण कौन है कंस।।
तू-तू,मैं-मैं छोड़ के,करो सभी संघर्ष।
प्रबल तन्त्र निर्मित करो,करो मनुज-उत्कर्ष।।
      प्रबल तन्त्र-सरकार जब,करेगी अपना काम।
      बढ़ेगा गौरव राष्ट्र का,राष्ट्र तीर्थ औ धाम।।
     भारत की गरिमा समझ,समझ वतन की आन।
     जननायक-सेवक करें,सेवा-कर्म महान ।।
सब सैनिक हैं राष्ट्र के,राष्ट्र-सुरक्षा धर्म।
प्राण-समर्पण राष्ट्र-हित,है उद्देश्य सुकर्म।।
जन्म-भूमि,जननी दोऊ, स्वर्ग से उत्तम होंय।
एक जन्म देती हमें,दूजी अन्न व तोय ।।

इन्होंने चुरायी...




इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे,
मेरा गीत कोई न इनके लिए है।
इन्हें ना मयस्सर हो ग़ज़ले मोहब्बत-
न संगीत कोई अब इनके लिए है।। इन्होंने चुरायी....
      इन्हें अब ना कहना कि ये महज़बीं हैं,
      इन्हीं की बदौलत ये मौसम  हसीं है।
       इन्हें क्या है लेना अब जज़्बा-ए-गुलों से-
       गुलों की मोहब्बत ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी..
कोई जा के कह दे बहारों से इतना,
कि बागों में फूलों को खिलने न दें वो।
इन्हें कर दो महरूम बहारों की ऋतु से-
बहारों की महफ़िल ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी....
       कोई फ़र्क पड़ता नहीं बादलों से,
       चाँद-तारे हमेशा रहेंगे जवां ।
       छीन लो इनसे इनकी जवां चाँदनी-
       चाँदनी की चमक अब ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे....।।
   बेवफ़ाई किया है इन्होंने सुनो,
  सिला बेवफ़ाई का इनको मिले।
 चैन इनको मिले ना कभी ऐ ख़ुदा!
मीत की प्रीति जग में न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं....।।

ज़िन्दगी में मिले...



ज़िन्दगी में मिले तू मेरे दोस्त यूँ ,
जैसे कश्ती को कोई किनारा मिला।
रहीं ढूंढ़ती जिसको नज़रें मेरी-
अब वही खूबसूरत नज़ारा मिला।।
      काली ज़ुल्फ़ें तेरी जैसे काली घटा,
      बिंदिया माथे की बिजली की आभा लगे।
      तेरे मुखड़े पे रौशन किरन चाँद की-
      भटके राही को जैसे सहारा मिला।।
आंख मिलते ही यादों के ताले खुले,
प्यार सदियों पुराना झलकने लगा।
परत-दर-परत मंज़र दिखने लगे-
जैसे खोया अमानत-पिटारा मिला।।
      सुर्ख़ होंठों तले तब दबीं रह गईं,
       बातें मीठी-पुरानी जो मनुहार की।
      सब उभर कर यूँ दिल में उबलने लगीं-
       जैसे शोले का कोई अंगारा मिला।।
घड़ी आज की बन तारीख़ी गयी,
नामुमकिन को मुमकिन ख़ुदा ने किया।
मयस्सर न था जिसको दीया कोई-
आज उसको चमकता सितारा मिला।।
      चलता रहा मैं अकेला यहाँ,
      डगमगाता हुआ,लड़खड़ाता हुआ।
       देख कर के तुम्हें दिल ये कहने लगा-
       आज कोई तो अपना हमारा मिला।।
गीत गाने लगा, गुनगुनाने लगा,
मन ये मेरा जो रोता रहा रात-दिन।
मिल गया छाँव आँचल का तेरे इसे-
जैसे दुनिया का सुख इसे सारा मिला ।।
       आज कोई तो अपना हमारा मिला।।

आज मौसम का रुख...



आज मौसम का रुख कुछ है बदला,
लगता तूफ़ान है आने वाला।
अभी तक रही चाँदनी  जो यहां-
हो गया उसका धुँधला उजाला।।
        शोर करने लगीं हैं हवायें,
        काँपने अब लगीं हैं दिशायें।
       नभ में बादल उमड़ने लगे हैं-
       पेट सरिता का है भरने वाला।।
तोड़ तट-बन्ध को जल बहेगा,
नष्ट फसलों को अब वह करेगा।
बाढ़ का हो निरंकुश यह पानी-
छिनने वाला है मुख का निवाला।।
        ज़िन्दगी की सुनोगे रुलाई,
        होगी खुशियों की झट-पट विदाई।
        सुख लुटाती हुयी ज़िन्दगी का-
        अब तो निकलेगा सारा दिवाला।।
जग सुरक्षित रहेगा जभी,
सुख की सरिता बहेगी तभी।
प्यार कर लो प्रकृति से ज़रा सा-
मारेगा सुख को ना  पाला।।
      पेड़-पर्वत-नदी की रवानी,
      हैं ये क़ुदरत की सारी निशानी।
      इनकी रक्षा स्वयम की है रक्षा-
      प्यार क़ुदरत से कर लो निराला।।
क़ुदरत सुरक्षित तो जीवन सुरक्षित,
जीवन सुरक्षित,न खुशियों से वंचित।
यही धारणा यदि रहेगी सदा तो-
नहीं बाल बांका कभी होने वाला।।
    प्यार क़ुदरत से कर लो निराला।।

इंसानियत के...



इन्सानियत के दुश्मनों का अंत होना चाहिए।
हमलावरों पे हमला तुरन्त होना चाहिए।।
हो चुकीं बातें बहुत अब फाइलों को बंद कर।
होली जलाओ दोस्तों बसन्त होना चाहिए।।
                                    इन्सानियत के....
घुस-घुस के मारो जा सभी हर मुल्क़ के ग़द्दार को।
अब सारथी को कृष्ण सा बलवन्त होना चाहिए।।
                                   इंसानियत के....
रख दो कुचल के सिर सभी नापाक दिल वालों के अब।
काँधे धरी बन्दूक को लड़न्त होना चाहिए।।
                                  इंसानियत के....
युद्ध की भेरी बजी है जान लो ऐ दोस्तों।
मारो-मरो उदघोष अब जीवन्त होना चाहिए
                                   इंसानियत के....
सारी मिसालें वीरता की हो गयीं फ़ीकी बहुत।
फ़िर उदाहरण वीरता का ज्वलन्त होना चाहिए।।
                                   इंसानियत के....
फ़ैसले लो नीतिगत पर ध्यान भी रखना ज़रा।
राष्ट्र का गौरव सदा कुलवन्त होना चाहिए।।
                इंसानियत के दुश्मनों का अन्त होना चाहिए।।

उड़ता जाय अकेला...



खुले गगन में एक परिंदा,उड़ता जाय अकेला।
ढूंढ़ रहा है मन्ज़िल अपनी,पीछे छोड़ झमेला।।
    उसे आस, विश्वास उसे,निश्चित मन्ज़िल वह पायेगा,
   नहीं थकेगा,नहीं थमेगा,खाली हाथ न आयेगा।
   रोक सकेगा उसे न अब यह,माया-बन्धन-खेला।।
                                       उड़ता जाय अकेला।।
प्रबल शक्ति इच्छा की हृदय में,जब-जब रहती है,
ओज और उत्साह की सरिता,जब मन में बहती है।
मिलता लक्ष्य-मिलन-सिंधु का,लहरों को अलबेला।।
                                 उड़ता जाय अकेला।।
रीति-रिवाज़-धर्म-मज़हब का,चक्कर छोड़े पीछे,
निष्ठा-लगन के जल से अपनी,भाव की बगिया सींचे।
पवन-वेग सँग लक्ष्य-विन्दु तक,जाये बिना ढकेला।।
                      उड़ता जाय अकेला।।

सदा साधना-रत-साधक,जब रहता है बिनु चिंता,
निश्चित हासिल कर लेता है,निधि-अमूल्य मुक्ता।
नहीं डिगा सकता उसको है,तूफ़ानों का मेला।।
                       उड़ता जाय अकेला।।
होता नहीं अमंगल उसका,मंगल ही मंगल है,
सिद्ध-हस्त योद्धा वह होता,जीवन तो दंगल है।
तोड़ सके ना मंसूबों को,बाधाओं का रेला।।
                     उड़ता जाय अकेला।।
संघर्ष-यत्न जीवन के,हैं दोनों मीत पुराने,
इच्छा-शक्ति जोड़ती इनको,जग माने-ना-माने।
लघु खग-साहस ही दर्शाता,लक्ष्य-प्राप्ति-सुख-बेला।।
खुले गगन में एक परिन्दा, उड़ता जाय अकेला।।

Thursday, May 9, 2019

कुदरत का है कमाल...



कुदरत का है कमाल या इन्सान का फितूर।
होता है प्यार कैसा बता दो मेरे हुज़ूर??
          मत तोड़ना कली को चटका के मेरे यार।
          है क़ाबिले दीदार कोमल कली का  नूर।।
जीवन का रंग बसन्ती हो जाए तो बेहतर।
इसी की ही है जरूरत यही मुल्क़-ए-ग़ुरूर।।
         होता नहीं हासिल है कुछ,आंसू बहाने से फ़क़त।
         जंग-ए-आज़ादी का बस है त्याग ही दस्तूर।।
माली बग़ैर गुलशन तो रहता नहीं है खाली.
डूबा हुवा ये सूरज निकलेगा फिर जरूर।।
         कहता है छोटा दीपक सुन लो ऐ आफ़ताब।
         रहता मेरा है क़ायम बदली में भी सुरूर।।
देके ज़रा सा ध्यान तुम सुन लो ऐ नामदार।
चहिए अमन व चैन को बस एकता भरपूर।।

लिक्खा नहीं है बैठना...



लिक्खा नहीं है बैठना, मेरे नसीब में।
बुझ सकी न प्यास,था दरिया क़रीब में।।
       पायी जिसे थी हमने,बंजर जमीन थी।
       उफ़, खोजती सियासत नसीबा ग़रीब में।।
होता ग़ज़ब का खेल,सियासत के खेल में।
मिलती है दोस्ती को राहत रक़ीब  में।।
      विस्त्रित बहुत ही होता,मोहब्ब्त का दायरा।
       कोई सके न नाप,उसको जरीब में ।।।
होता है सबसे ऊँचा, इश्क़ का मोकाम।
रहता है नूर क़ायम,ख़ुदा का हबीब में।।
     कोई तो जा के कह दे,फूलों से बस ये बात।
     बन जायें अब वो पत्थर,दुनिया-दरीब में।।
होता नहीं है सानी, उस व्यक्ति का भी कोई।
सीखा है जिसने जीना, वक़्त की तहज़ीब में।
    बुझ सकी न प्यास,था दरिया क़रीब में।।

फूलों से सबक ले लो तू अभी...



फूलों से सबक ले लो तू अभी,
फूलों में ग़ज़ब नरमाई है।
शाम -सवेरे देखा करो,इनकी अनुपम सुघराई है।।
भोरों की भनक,कलियों की महक,
मन भावन और सुहावन है।
दिन-रात तितिलियाँ बहुरंगी,पा लेता चमन अंगड़ाई है।।
हर शाम-सवेरे खग-कलरव,
सुन-सुन मन-पीड़ा जाती है।
फागुन की पीली चादर में,
धरती युवती बहु भाती है।
मधुमास का आलम चारो तरफ,
लगता जीवन-संचार करे-
कल-कल सरिता की धारा में,पलता जीवन सुखदायी है।।-सूरज-चाँद-सितारे सभी,
लगते अत्यन्त निराले हैं।
अम्बर के दीप-प्रकाश सभी,
जीवन-ज्योति उजाले हैं।
स्वच्छ-सुगन्धित बहता पवन,।
करता है दूर थकान सतत-
खेतों में,बाग-बगीचों में,छायी मोहक तरुणाई है।।
गावँ की गोरी मटक-मटक,
आँचल में छुपाये प्यार चले।
प्रियतम-प्रेमी की याद में उसका,
चंचल जियरा मचले -मचले।
उड़-उड़ के पवन-प्रवाह से पल्लू,
अल्लढता दर्शाता है -
पाजेब की रुन-झुन सुन के लगे,कहीं दूर बजे शहनाई है।।
सतत प्रवाहित झरनें झर-झर,
अनुपम संगीत सुनाते हैं।
शिला-खण्ड से घायल जल-कण,
संघर्ष-गीत नित गाते हैं।
हर-पल देती रहती क़ुदरत,
जीवन-सन्देश निराला हमें-
जीवन के हर मोड़ पे देखो,क़ुदरत की अगुवायी है।।
राम-रहीम में फर्क नहीं,
नहिं ईसा और कन्हाई में।
हर देश की धरती अन्न उगलती,
प्राणी की ही भलाई में।
अग्नि-वायु-जल-क्षितिज नहीं,
करते हैं कोई भेद कभी-
लुका-छुपी क़ुदरत से करना,सदा रहा दुखदायी है।।
कल-कल सरिता की धारा में,पलता जीवन सुखदायी है।।

आंसुओं से भरी जिंदगी...



आंसुओं से भरी जिंदगी,
दर्दे दोज़ख़ से होती है बढ़कर।
बेसमय मौत इसकी दवा है-
करना ऐसा नहीं होता हितकर।।
   लोग कहते हैं फाँसी पे ख़ुद को,
   है चढ़ाना बहुत कायराना।
   ज़िन्दगी खूबसूरत सफ़र है,
   ऐसे-तैसे में उसको गवांना।
गिरना-उठना औ फिर उठ के गिरना,
बस यही ज़िन्दगी का  तकाज़ा।
ज़िन्दगी के हर इक पल को जीना-
होता सदा जग में सुख कर।।
    आते तूफ़ान जो ज़िन्दगी में,
    उनको आना है, आते रहेंगे।
    काम है छोटे दीपक का जलना,
    उसको तूफ़ां बुझाते रहेंगे।
ग़म नहीं चाँदनी को भले ढक लिया,
जो छाये रहे नभ में बादल।
देते मौक़ा उसे ही तो बादल-
निकलने का ख़ुद फिर से छट कर।।
   ज़िन्दगी के कुरुक्षेत्र में,
   पाण्डु-कौरव सदा ही रहे हैं।
   पाण्डु साहस औ धीरज से अपने,
  दण्ड कौरव के सारे सहे हैं।
युद्ध होना था वो तो हुआ ही,
और लड़ना पड़ा अपने लोंगो से।
पर,सफलता मिले बस जरूरी-
सारथी कृष्ण सा होना बेहतर।।
   पतली धारा निकल पर्वतों से,
   करती संघर्ष है जब उतरती।
   धर के आकार विस्त्रित धरा पे,
   वो उमड़ती-घुमड़ती है बहती।
पिलाती जलामृत सभी जन्तुओं को,
बहती-जाती अवनि पे निरन्तर।
अन्त में उसको मिलता मिलन-सुख-
सङ्ग सागर जो होता श्रेयस्कर।।
   मुश्किलों में तराशा मुसाफिर,
   अपनी मंज़िल का बनता चहेता।
   बस उसी को नहीं कुछ है मिलता,
   जोखिमों से जो मुँह मोड़ लेता।
लड़ते-लड़ते अखाड़े का अन्तिम,
होता योद्धा ही उत्तम विजेता।
घिसते-घिसते शिला पे ही मेंहदी-
सुर्ख़ होती सुनो, मेरे  प्रियवर।।
ज़िन्दगी के हर इक पल को जीना, होता सदा जग में सुखकर।।

Wednesday, May 8, 2019

प्रतिशोध लिया हमने चढ़कर...



प्रतिशोध लिया हमने चढ़कर,
कर छलनी छाती दुश्मन की।
शांत हुई ज्वाला अब कुछ-
जो रही धधकती तन-मन की।।
      आतंकवाद-नापाक-लोक को,
      चुनचुन के हमें ढहाना है।
      बिलों में आतंकी की घुस कर,
      उनको मार गिराना है।
अमर शहीदों की कुर्बानी,व्यर्थ नहीं अब जाएगी-
होगी विकसित जन-मानस में,इच्छा प्राण-समर्पण की।।
       रही कराहती शस्य-श्यामला,
       अपनी धरती ज़ुल्मों से
       दहशतगर्दी-खून-खराबों,
       लुका-छुपी-करतूतों से।
अब न रहेगी दहशतगर्दी,नहीं रहेगा मानव-शोषण-
जाग उठी धरती अब अपनी,नयी दृष्टि-नव चिन्तन की।।
       उड़ न सकेगा कोई परिंदा,
        अब आतंक हिमायत का।
         नामों-निशां अब मिट जायेगा,
         दहशतगर्द रवायत  का।
विश्व-पटल पर फहरेगा अब,परचम भारत माता का-
अमरीका -जापान-चीन,तारीफ हैं करते गुलशन की।।
        लौट के आया शान से अपना,        
       पवन-पुत्र  अभिनन्दन।
        पा के लाल सुरक्षित देखो,
        देश में है नन्दन-नन्दन।
अभिनंदन का करते सब मिल,एकसाथ अभिनंदन हैं-
हुई घड़ी आरम्भ देख लो,नव भारत के सर्जन की।।
        भारत की अद्भुत क्षमता का,
        नहीं विश्व में तोड़ है।
        जोड़-तोड़ में लगे पाक की,
        चाल का भंडाफोड़ है।
दे पनाह दहशतगर्दों को,पाक खूब पछतायेगा-
अब न हेकड़ी चलेगी उसकी,हया दिखेगी चिलमन की।।
     शान्त हुयी ज्वाला अब कुछ,जो रही धधकती तनमन की।।


हमसे ही वजूद तुम्हारा है...



कहा पुष्प ने सुन लो चमन,
हमसे ही वजूद तुम्हारा है।
पा हमसे महक यह जग महके-
वन-बाग़-पहाड़ बहारा है।।
           नदी की धारा में खुशबू,
           सर्वत्र महक  नभ-मण्डल में।
           खुशबू ही खुशबू फैली है,
            मंज़र में, हर जंगल में।
            दिग-दिगन्त सब महक उठा-
            क़ुदरत ने हमें निखारा है।।
हम नारी -माथे की शोभा,
हम मन्दिर की शान बने।
हमको सिर पर धारण करके,
स्वर्ग के देव महान बने।
प्रथम प्रेम के हम प्रतीक जो-
परिणय-जीवन-धारा है।।
          हम मुरीद हैं सुनो चमन,
          बस वीरों-वतन-परस्तों के।
          उनपे ही बिछ जाते हैं हम,
          जो पथ हैं सब अलमस्तों के।
          यद्यपि हम हैं रंग-विरंगे-
          पुष्प ही नाम हमारा है।।
सीख हमारी नरमायी औ,
कोमलता का रूप है।
सदविचार-सद्कर्म की खुशबू,
इसका मूल स्वरूप है।
बने सुगन्धित जीवन सबका-
यही पुष्प का नारा है।।
    हमसे ही वजूद तुम्हारा है।।

झट करती निपटारा...



होती धार क़लम की तेज,तलवार की जो है।
झट करती निपटारा,गुनहगार जो भी है।।
     सर काटे तलवार सभी को मालूम है,
     रक्त-पात हर बार, सभी को मालूम है।
करती कलम महज़ कागज़ पे,पलटवार जो भी है।।
                         झट करती निपटारा......।।
      सैनिक ले हथियार शोर बहु करते हैं,
      रण-भेरी घनघोर,जोर बहु करते हैं।
करती क़लम सलीक़े से,भावोद्गार जो भी है।।
                      झट करती निपटारा......।।
       तलवार-भक्त-जन हिंसक हैं,
      मानवता के परम शत्रु, विद्ध्वंसक हैं।
शान्ति-भाव से क़लम करे,प्रतिकार जो भी है।।
                  झट करती निपटारा......।।
      ऐटम-बॉम्ब-मिसाइल-युग है,
     औ भष्माग्नि रफाएल-युग है।
किया क़लम ने हर युग में,अमन-प्रहार जो भी है।।
              झट करती निपटारा.......
      कलम से अक्षर बनते हैं,
     मानव की पहचान-साक्ष्य जो गढ़ते हैं।
करो क़लम का सब मिलि अब,सत्कार जो भी है।।
            झट करती निपटारा.......।।
     खड्ग-कटार की संस्कृति त्यागो,
     ऐटम-बॉम्ब-मिसाइल न दागो।
होवे क़लम मात्र ही अपना,यह हथियार जो भी है।।
झट करती निपटारा,गुनहगार जो भी  है ।।

टूटता हुआ नभ का तारा नहीं...



टूटता हुआ नभ का तारा नहीं,
मायूस हो,ग़म का मारा नहीं।
मेरा मन तो पंछी जो उड़ता फिरे-
बांटता दर्दे दुनिया,आवारा नहीं।।
      जा के गाँवों -सिवानों में घूमे-फिरे,
      पेड़-पौधों की भाषा को समझा करे।
       कह दे,नदिया की धारा को पहचान कर-
       ज़िन्दगी जीत है,कभी हारा नहीं।।
जश्न हैं ग़म-खुशी दोनों इसके लिए,
रिश्ता-याराना सुख और दुख से भी है।
मील के पत्थरों को ये गिनता नहीं-
चल दिया,मुड़ के पीछे निहारा नहीं।।
       चाँदनी की उजाले भरी रात हो,
       या अमावस का गाढ़ा अँधेरा रहे।
       लक्ष्य साधे बिना ये तो लौटे नहीं-
       लक्ष्य इसका,नदी का किनारा नहीं।।
सफलता-विफलता को समझे बिना,
लाभ औ हानि का क्या गुणा- भाग है?
मन मेरा कर्म करता सदा ही रहे-
कर्म-फल लक्ष्य इसका तो सारा नहीं।।
      ऐसा भी नहीं कि कभी थकता नहीं,
      देवता भी नहीं जो सिसकता नहीं।
  थकना-सिसकना है फ़ितरत में इसकी-
ये मरता तो है, कभी मारा  नहीं ।।
    मकसदे ज़िन्दगी तो रहम करना है,
    मज़लूम की ही मदद करना  है।
    होती दीनों की सेवा ही शाने ख़ुदा-
    जन्म लेना हो शायद दोबारा नहीं।।

Monday, May 6, 2019

हाय!हमने...



है सभी को हमें यह बताना,
मिल गया आज मेरा दीवाना।
प्यार अपना है सदियों पुराना-
हाय!हमने सचाई न जाना ।।
     हर जनम हम मिले, प्यार करते रहे,
     प्राण-सर में कमल-पुष्प खिलते रहे।
     गुजरीं सदियाँ न जाने हैं कितनी मग़र-
     आज भी प्यार का लगता नूतन फ़साना।।
                                  हाय!हमने.......।।
नदी-पेड़-पर्वत-गगन औ सितारे,
ज़मीं-चाँद-सूरज सभी यूँ पुकारें।
कहें प्यार मेरा सदा ही रहा है-
अद्भुत-अनूठा मिसाले  ज़माना।।
                   हाय!हमने.......।।
है प्यार अमृत इसे जो पिया,
हो गया वो अमर देवता की तरह।
देवता को भले दुनिया पूजे यहाँ-
प्यार ही होता देवों का अनुपम ठिकाना।।
                  हाय!हमने.........।।
प्यार गीतों में,ग़ज़लों में,मन्त्रों में है,
धार सरिता की,कविता के छंदों में है।
चन्द्र-सागर-मिलन पूर्णिमा-रात्रि को-
होता अनुपम-सुखद औ सुहाना।।
                  हाय!हमने........।।
भाव से ही भरा भक्त-भगवान का,
जो है दुनिया मे बस वही प्यार है।
हृदय दे दिया,लुट गया,मर मिटा-
प्यार का अर्थ बस,स्वत्व को है मिटाना।।
                हाय!हमने.........।।
राजे उल्फ़त यही जान लो अब सभी,
छल-कपट-बेवफाई नहीं प्यार में।
प्यार चाहे समर्पण अहम-स्वत्व का-
बस,इसी सत्य को ही हमें था जताना।।
हाय!हमने  सचाई न जाना ।।

पग में लगे जो ठोकर...



पग में लगे जो ठोकर, आहें कभी न भरना।
बेगैरतों की कृत्यों को,होते कभी न सहना,
होगी बड़ी तौहीनी,इस मादरे वतन की-
दुश्मन के सामने,मस्तक का तेरे झुकना।।
     फ़र्ज़ अपनी माटी का,तुम भूलना  नहीं,
     सम्बन्ध दीप-बाती का,तुम तोड़ना नहीं।
    तुम ही गुरूरे मुल्क़,शाने वतन तुम्ही हो-
    होती है फ़ख़् की बात,माटी की ख़ातिर मिटना।।
होते अमन-पसन्द न कुछ,सियासत के चाटुकार,
है असभ्य उनकी भाषा,नापाक हैं  विचार।
वे चाहते हैं टुकड़े-टुकड़े वतन का  करना-
ऐसे ही सिरफिरों से,बच के ज़रा ही रहना।।
    हम रह के क्या करेंगे,यदि देश ना रहेगा?
    जब लुट गयी हो अस्मत,तो कुछ नहीं बचेगा।
    है वक़्त का तकाज़ा,मुट्ठी में इसको कर लो-
    सबसे है पाक़ मज़हब,सेवा वतन की करना।।
चाहे रहें न हम सब,प्यारा वतन रहेगा,
बावास्त-ए-वतन ही,सबका लहू बहेगा।
होगा सफल ये जीवन,तेरा तभी ऐ मित्रों-
समझोगे जब वतन की,माटी को अपना गहना।।
    उत्तर हो चाहे दक्खिन,पूरब हो चाहे पश्चिम,
   हैं हमवतन सभी जन,कोइ तेज हो या मद्धिम।
   सब एक सुर में कहते,सब कुछ वतन हमारा-
  अम्ने वतन की ख़ातिर, जीना हमारा मरना।।

आया समझ...



न मैंने तुझे पुकारा,
न तुमने मुझे पुकारा।
आंखों के बस मिलन से-
आया समझ इशारा।।
         आया समझ.....।।
कहिं दूर तरु -शिखा पे,
बैठी थी एक कोयल।
मिसिरी सी उसकी बोली-
खोले है राज सारा।।
       आया समझ.....।।
सो के सुबह उठा तो,
देखा कि एक हिरनी।
खोजे-फिरे विकल हो-
खोया जो दोस्त प्यारा।।
      आया समझ.....।।
भौंरे चमन में जा कर,
कलियों से कह रहे थे।
देखा कभी क्या तुमने-
मिलते नदी -किनारा।।
      आया समझ......।।
जीवन में प्यार साँचा,
जब भी गले मिला है।
दुश्वारियों का थप्पड़-
उसको लगा करारा।।
      आया समझ......।।
अहसासे प्यार होता,
शीतल पवन का झोंका।
देता सुक़ून दिल को-
जो है विरह का मारा।।
      आया समझ.......।।
   धातुओं की खन-खन,
   औ पायलों की छन-छन।
   समझो कि कौन किसका-
   होती यहाँ सहारा ।।
आया समझ इशारा ।।

होली-ईद-दीवाली...



होली-ईद-दीवाली तीनों,
होतीं प्रेम -पियाली।
प्रेम-पाग का रस पी के-
जन गायें फ़ाग-कौव्वाली।।सभी पैगामे मोहब्ब्त-सभी पैगामे मोहब्ब्त।।
     होली के सब रंग निराले,
     खेलें सङ्ग सेवइयां वाले।
     दीवाली का दीप जला कर-
      घर-आँगन में करें उजाले।।
करें सब ग़म को रुख़सत-सभी पैगामे मोहब्ब्त।।
      भात-भोज-उत्सव-पर्वों पर,
      सब मिल कर नाचें-गायें।     
      मिल कर दोनों मुल्ला-पण्डित-
      रचि-रचि भोग लगायें।।
धर्म की अद्भुत सोहबत-यही पैगामे मोहब्ब्त।।
      नन्दन-क्रन्दन दोनों में भी,
      रहें सभी सहभागी।
      चलें क़दम से क़दम मिला कर-
      बीतराग-अनुरागी।।
नहीं लें काम से मोहलत।।सभी पैगामे मोहब्ब्त।।
      होते फूल गोया बहुरंगी,
     पर रहता एक चमन है।
     भाँति-भाँति की खुशबू ले के-
     देता शांति-अमन है।।
चमन में ग़ज़ब की क़ुव्वत-यही पैगामे मोहब्ब्त।।
    अम्बर की महफ़िल सजती है,
     सूरज-चाँद-सितारों से।
     गौरव-गरिमा मुल्क़ की बढ़ती-
     छोटे-बड़ किरदारों से।।
बढ़ायें सब मिल कर शोहरत-यही पैगामे मोहब्ब्त।।

तेरे बग़ैर ज़िन्दगी...



तेरे बग़ैर ज़िन्दगी,अधूरी ही रह गयी।
चाहे क़रीब आउं पर,दूरी ही रह गयी।।
    मज़हब का भेद था कभी,तो ज़ात-पांत का।
    कभी सरहदे मुल्क़ की,मजबूरी ही रह गयी।।
बांधता बन्धन में क्यूं, प्रीति को समाज?
बेलौस महके प्रीति जो,कस्तूरी ही रह गयी।।
    सब कुछ मिला तुम्हें तो,भला बस यही मिला!
    पाये नहीं गर प्रीति जो,मयूरी ही रह गयी।।
बढ़ता रहा तमाम ही,बातों का सिल-सिला।
पर हो सकी न बात,जो जरूरी ही रह गयी।।
    चेहरे कई लगे हुये हैं,एक ही पे यार!
    कैसे कहें कि कालिमा,सिन्दूरी ही रह गयी??
सियासत की दावँ-पेंच में,फसना कभी नहीं।
सियासत की हर अदा अब,छूरी ही रह गयी।

तेरे हसीन चेहरे से...


तेरे हसीन चेहरे से,हटती नज़र नहीं।
जी चाहता है कहना,क्या कह दें ख़बर नहीं।।
    नयनों की तेरे चुप्पी में,कुछ राज़ 
तो छुपा है।
    कैसे इन्हें मैं जानूँ,मिलती डगर नहीं ।।
तस्वीर से निकल कर,आ जा क़रीब मेरे।
रातों से कह दे कोई,करना सहर नहीं।।
    कागज़ पटल से उड़ कर,आ जा समा जा दिल में।
    दुनिया में कोई तुझ सा तो,हमसफ़र नहीं।।
तेरे अधर की हल्की,मुस्कान भोली-भाली।
मोनालिसा सी लगती,ढाए कहर नहीं।।
     तेरे चित्र के चितेरे,होंगे जहां में अनगिन।
     मेरे ज़िगर सा कोई,होगा ज़िगर नहीं।।
शफ़्फ़ाक़ संगमरमर सा, तराशा तेरा बदन।
रचने में कोई क़ुदरत ने,छोड़ी कसर नहीं।।

Sunday, May 5, 2019

क़ाबिज़ न होने...


क़ाबिज़ न होने देना,मन पे थके बदन को,
तन की थकान देती,उदासी सदा ही मन को।
होता बड़ा दिलेर है,इन्सान का ये मन-
ज़िंदा-दिली से आदमी,छू लेता है गगन को।।
                     क़ाबिज़ न होने......।।
नेपोलियन कहा है,कुछ भी नहीं असम्भव,
ऊँचा ही तो मनोबल,करता असम्भव सम्भव।
पहना दो मुश्किलों को सौहार्द की माला-
तरसेंगी तब ये मुश्किलें,कोमल तेरी छुवन को।।
                क़ाबिज़ न होने.......।।
अख़बार में छपोगे,टी.वी.में तुम दिखोगे,
होगा बुलन्द तेरा,हर काम जो करोगे।
चर्चाये आम होंगे,तेरे क़ाफिये औ नग़में-
दुनिया पसन्द करेगी,तेरी ही हर चलन को।।
              क़ाबिज़ न होने.......।।
राज-पथ पे पट्टिका,तेरे नाम की लगेगी,
शिक्षा-सदन बनेंगे,महफ़िल अदब सजेगी।
नवाज़ोगे बस तुम्ही ही,इन्तज़ामी बैठकों को-

सम्मान देगी दुनिया,तुमको,तेरे वतन को।।
           क़ाबिज़ न होने........।।
तेरी कीर्ति का पताका,फहरेगा चारो-ओर,
नाम का ही तेरे,जन-जन में होगा  शोर।
हो जाओगे अमर तुम,अपने ही हौसलों से-
ये आसमां भी झुकता,तुझ जैसों के नमन को।।
          क़ाबिज़ न होने........।।
हौसले से बढ़कर,होता नहीं है कुछ भी,
हों हौसले बुलन्द तो,न तन थके ही कुछ भी।
हौसलों को अपने,रखना सदा  बुलन्द-
ग़ुल खिल के ख़ार संग ही,देता खुशी चमन को।।
     ज़िंदा-दिली से आदमी,छू लेता है गगन  को।।

देखो नहीं मजलूम को...


देखो नहीं मजलूम को,हिकारत की नज़र से।
तुम दोनों का है वास्ता,बस एकी शहर से।।
      क्या पता पहले कभी थे,हमसफ़र दोनों।
       गुजरे हो दौरे कहर बस,एकी कहर से।।
हैं ज़िन्दगी की राह पे,काँटे बिछे हुए।
गुजरोगे तुम यक़ीनन,कल उसी डगर से।।
       आहे गरीब फाड़ दे सीना-ए-आफताब।
       ज्वाला धधक के निकले,सुलगते ज़िगर से।।
मासूमियत में उसकी,बसता है नाग-लोक।
कूपित हुआ तो बच नहीं, पाओगे ज़हर से।।
      बेबसी को उसकी कमज़ोरी,न समझना।
      कट जाते हैं पत्थर भी,दरिया की लहर से।।
ख़िताबे गरीब नेवाज़ से,नवाज़े गए ख़ुदा।
ख़ुदा हुए ख़ुदा महज़,ग़रीबी की असर से।।

तज के संसय...


देख कर पंखुड़ी तरु-शिखा पर,
मन में क़ुदरत के प्रति प्रेम जागा।
भ्रम मेरे मन में जो पल रहा था-
तज के संसय तुरत मन से भागा।।
         आ गया अब समझ में मेरी,
         कि क़ुदरत की क्या है पहेली?
         सरिता की धारा-तरंगें-
         ज़िन्दगी की हैं सच्ची सहेली।
        बोली-भाषा समझने लगा हूँ-
       तरु पे बैठा क्या कहता है कागा??तज के संसय....।।पर्वतों से उतरता ये झरना,
नृत्य-सङ्गीत की दास्तां है।
खुशबू-ए-ग़ुल जो पसरी यहाँ-
जान लो,नेक दिल गुलसितां है।
होले-होले ये बहती हवा भी-
कातती रहती जीवन का धागा।।तज के संसय.....।।
     बोली कोयल की मीठी सुहानी,
    रट पपीहा की पिव-पिव कहानी।
      बाग़ में गुनगुनाते जो भँवरे-
      उनमें सरगम की अद्भुत रवानी।
      पंछियों की चहक जो न समझे-
      उससे बढ़कर न कोई अभागा।।तज के संसय......।।
दौलते ज़िन्दगी है प्रकृति जान लो,
बस ख़ुदा की नियामत इसे मान लो।
इबादत प्रकृति की,यही धर्म है-
इसकी सुरक्षा का ब्रत ठान लो।
मन्दिर-मस्ज़िद यही तेरा गुरुद्वारा है-
प्रेमी क़ुदरत का होता सुभागा।।तज के संसय....।।
      चहक औ महक जो सुलभ है यहाँ,
      जल की धारा प्रवाहित तरल है यहाँ।
     खाते-पीते-उछलते सभी जन्तु हैं-
     सबके जीवन में लय-ताल रहती यहाँ।
     प्रकृति की अमानत हैं वन-वृक्ष अपने-
     धन्य, इनसे जो अनुराग लागा।।तज के संसय......।।
प्रीति की रीति हमको सिखाते यही,
और हमको बताते डगर जो सही।।
नेह जल से,पवन से,अगन से जो है-
वन्य प्राणी सिखाते हैं हमको वही।
सो रहा था हमारा जो मन आज तक-
ऐसी बातों के प्रति अब है जागा।।तज के संसय.....।।

मानवता अपनाओ...


जाति-धर्म से ऊपर उठ कर,मानवता अपनाओ।
सकल विश्व परिवार है अपना,जीओ और जिलाओ।।
       सदा विखण्डित हुई एकता,
       मज़हब की कट्टरता  से।
        अलगाववाद-आतंकवाद के,
         क्रूर कर्म बरबरता  से।
सब जन आगे बढ़कर,एक सूत्र में बंध जाओ-
आतंकवाद के इस कलंक को,यथाशीघ्र मिटवाओ।।
       चारो-तरफ़ आज विश्व में,
       नर-संहार का तांडव है।.
        कोई बनता दुर्योधन तो,
         कोई बनता पांडव  है।
सुनने वाला गीता का उपदेश,मग़र कोई अर्जुन हो-
ज्ञान-कर्म का बोध करावे,ऐसा कान्हा बुलवाओ।।
        अपने और पराये का अब,
          भेद  मिटा  दो  भाई।
          मज़हब की दीवार तोड़ कर,
            प्रेम  से  पाटो  खाईं।
गले मिलो सौहार्द्र भाव से,मन में बिना भरम के-
एक भाव से, एक बोल हो,संस्कृति नवल रचाओ।।
        भारत औ जापान-चीन,
        और देश अफ्रीका  भी।
         अरब-पाक-इंग्लैंड और,
           रूस-अमरीका  भी।
न्यूज़ी-थाई-लंका और सङ्ग अस्तरेली भी-
सरगम के सुर सप्त एक कर,रसमय गीत सुनाओ।।
       कभी न बाँटो सुनो बन्धुवर,
       अवनि-सिंधु-अम्बर को।
        राम-रहीम-मोहम्मद-ईसा,
        सबके हैं,पैगम्बर  को।
मज़हब के बन्धन में रखना,इनको उचित नहीं है-
सब सबके हैं,सब अपने हैं,ऐसी ज्योति जलाओ।।
       बहुत हुआ यह खून-खराबा,
        अब तो जागो  मित्रों!
        हृदय खोल कर,प्रेम-शान्ति का,
         जश्न मनाओ  मित्रों!
देख अवनि पर अमन-चैन को,खुश होगा ऊपरवाला-
वही नियन्ता-कर्त्ता-धर्ता,उससे नेह  लगाओ  ।।
सकल विश्व परिवार है अपना,जीओ और जिलाओ।।