Saturday, December 22, 2018

हे महाशक्ति,है महाप्राण!...


हे महाशक्ति!हे महाप्राण!मेरा वन्दन स्वीकार करो।
कर दो सम्भव मैं तिलक करूँ,मेरा चन्दन स्वीकार करो।।
                                   हे महाशक्ति,है महाप्राण!....
युगों-युगों से इच्छा थी,कब तेरा दीदार करूँ?
चाहत थी ना जाने कब से तेरा ख़िदमदगार बनूँ?
करूँ अर्चना तत्क्षण तेरी,मेरा क्रन्दन स्वीकार करो।।
                                हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
ललित ललाम निनाद तुम्हारा महाघोष परिचायक है।
जलनिधि का नीलाभ आवरण चित-हर्षक-सुखदायकहै।
करो कृपा मैं आसन दे दूँ, मेरा स्यंदन स्वीकार करो।।
                            हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
पूनम का वो चाँद सलोना जब अम्बर पे होता है,व
तू ले अँगड़ाई ऊपर उठ कर बाहों में भर लेता है।
बंधू प्रेम-धागे से तुझ सङ्ग, मेरा बन्धन स्वीकार करो।।
                           हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....
तू पयोधि-उदधि-रत्नाकर,जल-थल-नभ-चर पालक है।
प्रकृति-कोष के निर्माता तू,जीवन-ज्योति-विधायक है।
चरण पखारू मैं भी तेरा,मेरा सिंचन स्वीकार करो।।
                          हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....।।

किसी शक्ति ने जन्म लिया...


जब -जब पाप बढ़ा धरती पे,
किसी शक्ति ने जन्म लिया।
पाप से बोझिल इस धरती को,
पाप-फ़ांस से मुक्त  किया।।
        जीवन कभी न बच पाया है,
       झूठ के अलम्बरदारों से।
       कामी, कपटी,कुटिल,प्रलोभी,
       जुर्म के ठेकेदारों  से।
       साफ-पाक-बेबाक मोहब्ब्त, 
       जब -जब जग में रोई है।
       उसकी ही मुस्कान की ख़ातिर -
       किसी शक्ति ने जन्म लिया।।
नकबजनी होती रहती है,
मन्दिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारे में।
क्या-क्या नहीं हुईं हैं बातें,
गिरजाघर के बारे में।
इंसान बना इंसाफ़ का दुश्मन,
जब-जब इस धरती पे।
लूट-पाट-उत्पात रोकने-
किसी शक्ति ने जन्म लिया।।
     लहू-लुहान जब हुई मनुजता,
     रक्त-पात चहुँ ओर हुआ।
     चन्दन जब त्यागा शीतलता,
     अमृत विष घनघोर हुआ।
     नहीं बचे जब पोथी-पन्ना,
     शिक्षा-सदन कंगाल हुआ।
     तालीम -इल्म-रक्षार्थ जगत में-
     किसी शक्ति ने जन्म लिया।।
राह सही इंसान चुनें सब।मेल-भाव से पलें-बढ़ें ।
हक़-हुक़ूक़ को ध्यान में रख के,
आपस में नहिं लड़ें-भिड़ें ।
कोई दुशासन जब-जब करता
अबला का यदि चीर-हरण।
नारी-लाज बचाने ख़ातिर-
किसी शक्ति ने जन्म लिया।।
     पर्वत-शिखर, समन्दर-तट तक,
     चहुँ-दिशि विलसे, दिगदिगन्त तक।
     एक जाति हो,एक धर्म हो,
     एक भाव मानुष -मन तक।
      जब इसके विपरीत हुआ कुछ,
      नामाकूल सलूक़ हुआ कुछ।
     सुख-सुकून को क़ायम रखने-
     किसी शक्ति ने जन्म लिया।।

Saturday, December 8, 2018

क्या रह पाओगे?


रिम-झिम हो बरसात,
पिया नहीं साथ-कहो क्या रह पाओगे?
सावन की हो रात,
पिया नहीं साथ-कहो,क्या रह पाओगे?
    मेघ-गरजना से दिल दहले,
     बिजली आंख मिचौली खेले।
      लिए विरह-आघात-कहो, क्या रह पाओगे?
धरती ओढ़े धानी चुनरिया,
बलखाती-इठलाती गुजरिया।
वन-उपवन भरे पात-कहो, क्या रह पाओगे?
      सन-सन बहे पवन पुरुवाई,
       कारी बदरिया ले अंगड़ाई।
       सिहर उठे तन-गात-कहो, क्या रह पाओगे?
बस्ती-कुनबा, गांव-गलिन में,
बाग़-बग़ीचा, खेत-नदिन में।
क़ुदरत की सौग़ात-कहो, क्या रह पाओगे?
     अनुपम प्रकृति-प्रेम-रस बरसे,
      निरखि-निरखि जेहि हिय-चित हर्षे।
      विह्वल मन न आघात-कहो, क्या रह पाओगे?

इन्होंने चुरायी...



इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे,
मेरा गीत कोई न इनके लिए है।
इन्हें ना मयस्सर हो ग़ज़ले मोहब्बत-
न संगीत कोई अब इनके लिए है।। इन्होंने चुरायी....
      इन्हें अब ना कहना कि ये महज़बीं हैं,
      इन्हीं की बदौलत ये मौसम  हसीं  है।
       इन्हें क्या है लेना अब जज़्बये गुलों से-
       गुलों की मोहब्बत ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी..
कोई जा के कह दे बहारों से इतना,
कि बागों में फूलों को खिलने न दें वो।
इन्हें कर दो महरूम बहारों की ऋतु से-
बहारों की महफ़िल ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी....
       कोई फ़र्क पड़ता नहीं बादलों से,
       चाँद-तारे हमेशा रहेंगे जवां ।
       छीन लो इनसे इनकी जवां चाँदनी-
       चाँदनी की चमक अब ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे....।।
   बेवफ़ाई किया है इन्होंने सुनो,
  सिला बेवफ़ाई का इनको मिले।
 चैन इनको मिले ना कभी ऐ ख़ुदा!
 मीत की प्रीति जग में न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं....।।

तिल-तिल घुटन में रह के...


तिल-तिल घुटन में रह के बितायी है ज़िन्दगी,
जब-जब गिरे हैं हमको उठायी है ज़िन्दगी।
फिर भी न हो यकीं तो हवाओं से पूछ लो-
तूफ़ान में भी हमने सजायी है ज़िन्दगी।।
        मौसम की बेरुख़ी ने सताया है रात-दिन,
        बरसात ने भी जलवा दिखाया है रात-दिन।
       हुलास लिए दिल में मगर बादलों जैसा-
        मन्ज़िल पे हमें अपनी पहुंचायी है जिंदगी।।
जब भी किसी को हमने चाहा है प्यार से,
हम पा सके उसे ना दुनिया के वार  से।
जैसे ही हमपे लोगों ने कीचड़ उछाला है -
दामन पे पड़े दाग़ मिटाई है  ज़िन्दगी ।।
       प्रायः घनेरे बादल ग़मों के  घिरे  हैं ,
        बेसुरी सी मन में कोई राग  छेड़े हैं।
        बेआसरा,ऐसे में कोई बात न हो जाय-
         टूटने से हमको बचाई है  ज़िन्दगी ।।
ज़िन्दगी अच्छी-बुरी हो चाहे जो बसर,
हर हाल में यह अपनी रहती है रहगुजर।
मानो तमाम शाम रुलायी है यह  हमें -
सुबहें हैं बेशुमार जब हँसाई है  जिंदगी।।
       ज़िन्दगी ख़ुदा की सदा शुक्रगुज़ार है,
       रब ने किया इसी से जग को गुलजार है।
        है क़ाबिले तारीफ़ इसकी कर्ज अदायगी-
        ख़ुद मौत को गले से लगायी है  ज़िन्दगी।।
क़यामत के बाद कौन आता यहाँ पे है,
मुश्किल बहुत है जानना, जाता कहाँ पे है।
गर नामो-यश रह जा बाद-ए-क़यामत तो-
समझो, यही बस कमायी है  ज़िन्दगी ।।

इक मोड़ ज़िन्दगी में...


इक मोड़ ज़िन्दगी में,
आया है आज  मेरी।
ख्वाबों की रोशनी को-
ढक ली निशा अंधेरी।।
                सूरज की जिस किरन पे,
                मुझे था बड़ा भरोसा।
                 धूमिल भई किरन वो-
                  छायी घटा  घनेरी।।
सरिता जो बह रही थी,
आशा-उमंग की उर में।
बहने लगी शिथिल वो-
गिरि-खण्ड पा करेरी।।
               कलरव जो पंछियों के,
               अबतक रहे सुहावन।
                मायूस कर  दिए वो-
                बीती व्यथा  उकेरी।।
पर्वत पे उड़ते बादल,
मनमीत जो थे   मेरे।
अब  तो नहीं  बरसते-
रूखी गली  है   मेरी।।
              मेरी ज़िंदगी  का  उपवन,
              फूलों  से महँके  महँ-महँ।
               यह आस थी हृदय  में-
               कि  चहके  चमन-फुलेरी।।
ले  आस  जी  रहा  हूँ,
विश्वास  जी  रहा   हूँ।
छट  जायेगा  अंधेरा-
रवि,रश्मि  पा  के  तेरी।।
       इक मोड़  ज़िन्दगी  में....।।

गर गिरे को उठा दें तो...


काम को,क्रोध को,लोभ को,मोह को,
गर जहां से मिटा दें तो क्या बात है।
राह में जो गिरा,गिर के उठ ना सका-
 गर गिरे को उठा दें तो, क्या बात है।।
      रोज जीते हैं हम सिर्फ़ अपने लिये,
      ऐसा जीना भला कैसा जीना हुआ।
     सिर्फ़ तन के लिये ना,वतन के लिये,,
     जो जिये हम यहां गर तो,क्या बात है।।
                         गर गिरे को उठा दें तो....
इक बादल उठा चाँद को ढक लिया,
चाँद फिर भी अंधेरे में रोशन रहा।
इस तरह गर्दिशे ग़म तो आते ही हैं,
दोस्ती इनसे कर लें तो,क्या बात है।।
                    गर गिरे को उठा दें तो....
    जो जनम ले लिया जो यहां आ गया,
   सबके जीने का हक़ है बराबर यहां।
   हक़ बराबर रहे, है ये ख्वाहिशे ख़ुदा,
   आदमी मान ले गर तो,क्या बात है।।
              गर गिरे को उठा दें तो....
बात तो बात है बात में कुछ नहीं,
बात ही बात में बात हो जाती है।
बात बिगड़े न पाये, यही बात है,
बात को गर बना दें तो,क्या बात है।।
     राह में जो गिरा गिर के उठ ना सका-
    गर गिरे को उठा दें तो,क्या बात है।।

Saturday, December 1, 2018

इक मोड़ ज़िन्दगी में...


इक मोड़ ज़िन्दगी में,
आया है आज  मेरी।
ख्वाबों की रोशनी को-
ढक ली निशा अंधेरी।।
                सूरज की जिस किरन पे,
                मुझे था बड़ा भरोसा।
                 धूमिल भई किरन वो-
                  छायी घटा  घनेरी।।
सरिता जो बह रही थी,
आशा-उमंग की उर में।
बहने लगी शिथिल वो-
गिरि-खण्ड पा करेरी।।
               कलरव जो पंछियों के,
               अबतक रहे सुहावन।
                मायूस कर  दिए वो-
                बीती व्यथा  उकेरी।।
पर्वत पे उड़ते बादल,
मनमीत जो थे   मेरे।
अब  तो नहीं  बरसते-
रूखी गली  है   मेरी।।
              मेरी ज़िंदगी  का  उपवन,
              फूलों  से महँके  महँ-महँ।
               यह आस थी हृदय  में-
               कि  चहके  चमन-फुलेरी।।
ले  आस  जी  रहा  हूँ,
विश्वास  जी  रहा   हूँ।
छट  जायेगा  अंधेरा-
रवि,रश्मि  पा  के  तेरी।।
       इक मोड़  ज़िन्दगी  में....।।

तूफ़ान में भी हमने...


तिल-तिल घुटन में रह के बितायी है ज़िन्दगी,
जब-जब गिरे हैं हमको उठायी है ज़िन्दगी।
फिर भी न हो यकीं तो हवाओं से पूछ लो-
तूफ़ान में भी हमने सजायी है ज़िन्दगी।।
        मौसम की बेरुख़ी ने सताया है रात-दिन,
        बरसात ने भी जलवा दिखाया है रात-दिन।
       हुलास लिए दिल में मगर बादलों जैसा-
        मन्ज़िल पे हमें अपनी पहुंचायी है जिंदगी।।
जब भी किसी को हमने चाहा है प्यार से,
हम पा सके उसे ना दुनिया के वार  से।
जैसे ही हमपे लोगों ने कीचड़ उछाला है -
दामन पे पड़े दाग़ मिटाई है  ज़िन्दगी ।।
       प्रायः घनेरे बादल ग़मों के  घिरे  हैं ,
        बेसुरी सी मन में कोई राग  छेड़े हैं।
        बेआसरा,ऐसे में कोई बात न हो जाय-
         टूटने से हमको बचाई है  ज़िन्दगी ।।
ज़िन्दगी अच्छी-बुरी हो चाहे जो बसर,
हर हाल में यह अपनी रहती है रहगुजर।
मानो तमाम शाम रुलायी है यह  हमें -
सुबहें हैं बेशुमार जब हँसाई है  जिंदगी।।
       ज़िन्दगी ख़ुदा की सदा शुक्रगुज़ार है,
       रब ने किया इसी से जग को गुलजार है।
        है क़ाबिले तारीफ़ इसकी कर्ज अदायगी-
        ख़ुद मौत को गले से लगायी है  ज़िन्दगी।।
क़यामत के बाद कौन आता यहाँ पे है,
मुश्किल बहुत है जानना, जाता कहाँ पे है।
गर नामो-यश रह जा बाद-ए-क़यामत तो-
समझो, यही बस कमायी है  ज़िन्दगी ।।

इन्होंने चुरायी...


इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे,
मेरा गीत कोई न इनके लिए है।
इन्हें ना मयस्सर हो ग़ज़ले मोहब्बत-
न सङ्गीत कोई अब इनके लिए है।। इन्होंने चुरायी....
      इन्हें अब ना कहना कि ये महज़बीं हैं,
      इन्हीं की बदौलत ये मौसम  हसीं  है।
       इन्हें क्या है लेना अब जज़्बये गुलों से-
       गुलों की मोहब्बत ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी..
कोई जा के कह दे बहारों से इतना,
कि बागों में फूलों को खिलने न दें वो।
इन्हें कर दो महरूम बहारों की ऋतु से-
बहारों की महफ़िल ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी....
       कोई फ़र्क पड़ता नहीं बादलों से,
       चाँद-तारे हमेशा रहेंगे जवां ।
       छीन लो इनसे इनकी जवां चाँदनी-
       चाँदनी की चमक अब ना इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं नज़रें जो मुझसे....।।
   बेवफ़ाई किया है इन्होंने सुनो,
  सिला बेवफ़ाई का इनको मिले।
 चैन इनको मिले ना कभी ऐ ख़ुदा!
 मीत की प्रीति जग में न इनके लिए है।।इन्होंने चुरायी हैं....।।

सिर्फ़ तेरा...



चित ठिकाने नहीं, दिल ये माने नहीं,
सिर्फ़ तेरा नज़ारा नज़र आ रहा।
क्या करूँ ध्यान किसका बता मैं धरूँ?
सिर्फ़ तेरा सहारा नज़र आ रहा।।
         तेरे  चञ्चल नयन,शोख़ चितवन का फ़न,
         वो अदाएं,सदायें कहाँ सब  गयीं ?
         देखते -देखते ,देखो,ये क्या हुआ?
         डूबता एक सितारा नज़र आ रहा।।सिर्फ़ तेरा....
उजड़े मंज़र सभी,ताने खंज़र सभी,
वो हवायें, फ़ज़ाएँ सभी हैं खड़ी ।
लड़खड़ाते क़दम डीग न पायें कहीं,
टूटता ग़म का मारा नज़र आ रहा
                                           सिर्फ़ तेरा....
         ज़िन्दगी के सफ़र की डगर अब कठिन,
         वो खताएं,सज़ाएं मुबारक हुयीं।
         अश्क़ पीता हुआ, दिल का टूटा हुआ,
         वक़्त का एक मारा नज़र आ रहा।।सिर्फ़ तेरा....
आशिक़ी का सबब जानेमन,क्या कहें!
वो वफ़ाएँ ,ज़फाएँ बनीं सब यहाँ।
दुनियावाले न मानें कोई ग़म नहीं,
खार ही गुल में सारा नज़र आ रहा।।
              सिर्फ तेरा सहारा नज़र आ रहा।।

गर आदमी न होता...


गर आदमी  न होता एहसान फ़रामोश,
होता यही यक़ीनन सरताज़ ज़मी का।
         गर जानती ये दुनिया क्या फ़र्ज़-ए-इंसान?
         होता लहू न इतना बरबाद सभी  का ।।
                                    गर आदमी न होता....
ऋतु में,हवा ,फ़ज़ा में होता अगर वजूद,
होता चमन यक़ीनन आबाद कभी  का।।
                             गर आदमी न होता....
       होता अगर जो मेल कभी तल्ख़ -मधुर का
       यक़ीनन ये तल्ख़ होता मधुर स्वाद कभी का।।
                               गर आदमी न होता....
होता अगर निशंक ज़माने में कोई यहाँ,
यक़ीनन,वतन ये होता आज़ाद कभी का।।
                    गर आदमी न होता....

देखा है ज़माने में...


देखा है ज़माने में कैसे लोग बदलते हैं?
सावन के मौसमों में ये आग बरसते हैं।।
            खंज़र तो दुश्मनों ने ग़ुस्से में चुभोया है,
           हँस-हँस के दोस्ती को हरपल ये कुतरते हैं।।
                            देखा है ज़माने में....
सीखेगा कोई इनसे क्या जीने का सलीक़ा!
पीके शराबे उल्फ़त नफ़रत ये उगलते हैं।।
                           देखा है ज़माने में....
          मौसम के बदलने में कुछ वक़्त तो लगता है,
          तब्दीलियों में इनके सब लमहे गुजरते  हैं।।
                          देखा है ज़माने में....
दिन में हैं राहबर ये रातों में राहजन हैं,
इनसे ख़ुदा बचाये मिल-मिल के ये छलते हैं।।
                        देखा है ज़माने में....

चाहे किसी को...


दिल में हो दिल किसी का मोहब्बत की बात है,
चाहे किसी को कोई किस्मत की बात है ।।
         तूफ़ान का हो दौर,जलता रहे चराग,
         गागर में भर दे सागर,कुदरत की बात है।।
                                चाहे किसी को....
धरती बसे समन्दर, अम्बर पे माहताब,
दोनों का यूँ मिलन हो,उल्फ़त की बात है।।
                            चाहे किसी को...
       मंझधार में सफ़ीना मौजों की दरमियां,
      बेदाग़ बच गया जो,हिकमत की बात है।।
                           चाहे किसी को...
चारो तरफ़ अँधेरा, मंज़िल ना दिख सके,
कोई रौशनी दिखा दे,रहमत की बात है।।
                   चाहे किसी को कोई....।।

उदासियों में कट...


उदासियों में कट रही है शामे ज़िन्दगी,
हँसती है बदनसीबी मेरी,रोती है हर खुशी।।
         खुश हो के खत लिखा था ग़ज़लों के हर्फ़ से,
        ठुकरा दिए हैं पढ़ के वो सौगाते वन्दगी।।
                                    उदासियों में कट....
हरपल उन्हें ख़ुदा की क़सम, दिल में बिठाया
कुछ बात आ पड़ी कि मैं कर लूँ  ख़ुदकुशी।।
                       उदासियों में कट....
       गर है अंधेरा फिर भी तो उनका क़ुसूर है,
      दिल भी जला के हमने तो कर दी है रौशनी।
                           उदासियों में कट....
किस्मत का करिश्मा कहें या क्या कहें इसे?
साहिल पे ही बदनाम हुई मौज  मनचली।।
                        उदासियों में कट....।।

उनके फुरकत का...


उनके फुरकत का हमें ग़म सताये रहता है,
कलामे शायर की तरह लब पे आये रहता है।।
         अब तो शरमाये है बरसात में सावन की घटा,
         अश्क़ में यूँ बदन अपना नहाये रहता  है।।
                                    उनके फुरकत का....
चाँदनी रात का मंजर डसे नागन की तरह,
बिस्तरे गुल भी चादरे खार बिछाये रहता है।।
                            उनके फुरकत का....
          तड़पे बुलबुल की तरह यूँ क़फ़स में दिल अपना,
           ख्याल-ए-दीदार अब सियाही लगाये रहता  है।।
                                उनके फुरकत का....
सज़ा का है वही हक़दार मुक़म्मल  यारों,
मरकज़-ए-जुर्म से जो तालीम पाये रहता है।।
                            उनके फुरकत का....।।

मायूस ज़िन्दगी का...


मायूस ज़िन्दगी का इतिहास लिख रहा हूँ,
लूटा है मिल के सबने अहसास लिख रहा हूँ।।
             मिलते तो हैं गले वो इक यार की तरह,
             काटेंगे वो गला भी कुछ ख़ास लिख रहा हूँ।।
                                   मायूस ज़िन्दगी का....
इक दर्द है यहाँ तो इक दर्द है वहाँ भी,
बस दर्द ही है जीवन,बिन्दास लिख रहा हूँ।।
                           मायूस ज़िन्दगी का....
            कोई रहे ना भूखा, नंगा रहे ना  कोई,
           यह आस ले के मन में विश्वास लिख रहा हूँ।।
                               मायूस ज़िन्दगी का....
बुझती कभी नहीं क्यूँ हैवानियत की प्यास?
इन्सानियत भी प्यासी वो प्यास लिख रहा हूँ।।
                            मायूस ज़िन्दगी का इतिहास....

कर भरोसा यहां...


कर भरोसा यहां आदमी का नहीं,
आदमी है यहाँ आदमी का नहीं।।
       रोज मिलते हैं वो मुस्कुराते हए,
       पर तबस्सुम का फ़न आदमी का नहीं।।
                              कर भरोसा यहां....
दिल यक़ीनन उन्होंने हमें दे दिया,
दिल तो है वो मगर आदमी का नहीं।।
                       कर भरोसा यहां....
      वो तो लगते हमें हैं कि हैं आदमी,
      सिर्फ़ ईमान-धरम आदमी का नहीं।।
                        कर भरोसा यहां....
सबसे अच्छा ख़ुदा का हुनर आदमी,
उफ, बेहतर हुनर आदमी  का  नहीं।।
                     कर भरोसा यहां आदमी का नहीं।।

जीवन-बगिया...


जीवन-बगिया महकेगी कैसे जो तू संग नहीं,
फूलों का बिस्तर चुभे जैसे नश्तर कोई उमंग नहीं।।
                                               जीवन-बगिया....
सावन भी आया,छायीं घटायें,
चंचल बहे पुरुवाई।
फिर भी नहीं मेरे मन को चैन है,
ऋतु भी बहारों की आयी।
     रङ्गों में कोई रङ्ग नहीं।।
                       जीवन-बगिया....
कोयल के मीठे बोल न भाये,
न भाये पपीहा की बानी।
चन्दन का लेपन जलन है अगन की,
बूढ़ी भयी अब जवानी।
    वसूलों का कोई ढंग नहीं।।
                  जीवन-बगिया....
बादल व बरखा,पंछी व पर्वत,
सागर व सरिता,सुर-सरगम सब।
फीके पड़ गये सारे नज़ारे,
भाये न,बरसे अमृत भी अब।
     अब तो उड़े मन-विहंग नहीं।।
                 जीवन-बगिया....
भौरे हैं मायूस,कलियाँ उदासी,
साजन की गलियाँ हैं सूनी।
अम्बर पे सब हैं,सितारे व सूरज,
फीकी मगर रौशनी।
     सागर में कोई तरंग नहीं।।
               जीवन-बगिया महकेगी....

तुझे हो मुबारक़...


तुझे हो मुबारक़ तेरा प्यारा दिलवर,
मेरे दिल को कोई शिकायत नहीं है।
चली जा कली बन के तू उस चमन की,
मेरे दिल-चमन को शिकायत नहीं है।।
                    तुझे हो मुबारक़....
दुनिया तो बगिया है ज़िन्दगी की,
शम्मा है मोहब्बत की रौशनी की।
चली जा कली बन के तू उस चमन की,
मेरे दिल को कोई शिकायत नहीं है।।
                   तुझे हो मुबारक....
मेरा क्या ठिकाना,मैं एक दीवाना,
कभी हूँ हक़ीकत, कभी हूँ फ़साना।
पतंगा जला है शम्मा की लपट से,
दुनिया-ए-मोहब्बत की रवायत यही है।। 
                तुझे हो मुबारक....
समझना हमें एक झोका पवन का,
कि उड़ता हुआ एक पंछी गगन का।
सलामत रहे यार तेरा जहां में,
ख़ुदा को भी मेरी हिदायत यही है।।
               तुझे हो मुबारक....

प्रगति-पथ पर...






प्रगति -पथ पर पथिक है दूर अब मंज़िल कहाँ?
मंज़िलें पावों तले हैं,गर रहें अरमां जवां ।।
         आदमी तो हौसला का,
         साज़  है,आवाज़  है।
          हौसला  उसमें रहे  तो,
          मुश्किलें होंगीं  फ़ना ।। प्रगति-पथ पर....
काटों में कैसे  मुस्कुराये,
गुल  गुलाबों का  सदा!!
कितना हसीं है गुल कवँल का!!
गोया हो  कीचड़  सना।। प्रगति-पथ पर....
         तो लो, सबक ले लो इन्हीं  से,
         ज़िंदगी के राज़ का।
         जैसे  खिले  ये गुल सभी,
          तुम  भी खिल जाओ यहां।।प्रगति-पथ पर....
खुद को समझो तो,
ख़ुदाई आप अपने आयेगी।
हर बलन्दी चूम  लेगी,
तेरे क़दमों  के  निशां।।प्रगति-पथ पर....
           जोखिमों  से  जूझना तो,।
            फ़र्ज़ है  इन्सान का ।
             गर  इन्हें ठुकराया तो,
             ठुकरा तुझे  देगा  जहां।।प्रगति-पथ पर....।।

Monday, November 26, 2018

जी में आये...


जी में आये कि रंग भरा गीत लिख दूँ।
उछलूँ-कूदूँ लकीरे संगीत लिख दूँ।।
   कुदरत की रचना कहि नहि जाये,
   निरखि-निरखि जियरा बहु हुलसाये।
   मन में हुलास की बहे रसधार-
कि बहारों पे अपना मनमीत लिख दूँ।।
                                 जी में आये....
नदिया की धार संग पवन इठलाये,
अम्बर पे बादल मल्हार जनु गाये।
सावन की बूदों में भीजि करि गोहार-
साजन के दिल पे मै जीत लिख दूँ।।
                              जी में आये……..
  देखि-देखि धरती की धानी चुनरिया,
 रहि-रहि मनवा पुकारे सावरिया।
  बिना रोशनाई -कलम औ दवात-
  कोई मैं किताबे प्रीति लिख दूँ।।
                          जी में आये....
पहाड़ों पे काली घटा घिरी आये,
चमकि-चमकि बिजली मधुर मुसकाये।
देखि के मयूरा का ठुमक-ठुमक नाच-
जी में आये कि अमर प्रेम-रीति लिख दूँ।।
                        जी मे आये....
खेतों औ बागों में फैली हरियाली,
प्यारी-प्यारी पावस की ऋतु है निराली।
नदी-ताल-पोखर की देखि तरुणाई-
जिया कहे कुदरत की नीति लिख दूँ।।
                          जी में आये ……..
ऋतुओं में पावस ऋतु का नज़ारा,
बड़ा मनोहारी औ सबका सहारा।
नीर अमृत की देखि बौछार-
प्यास बुझने की आस-परतीति लिख दूँ।।
                        जी में आये कि रंग भरा गीत लिख दूँ।।

बाँसुरी बजाया कोई...


बांसुरी बजाया कोई,
आज याद आया कोई ।
भूली,बिसरी यादों में-
हल- चल मचाया कोई।।
मायूस होके ख्वाहिशें सब,
जाने कब कहाँ खो गईं?
सोती हुईं ख्वाहिशों को-
आज फिर जगाया कोई।।
थम गयीं थीं घंटियां जो
सारी मन के मंदिर की।
उन्हीं सारी घंटियों को-
आज फिर बजाया कोई।।
बीती हुयी घड़ियों की,
खट्टी-मीठी बातें जो।
खोई रहीं जाने कहाँ-।
आज फिर सुनाया कोई।।
बांसुरी की टेर सुन के,
भौरे गुन गुनाने लगे।
चमन की सारी कलियो को-
आज फिर खिलाया कोई।।
थम गई थी रुन-झुन जो,
पर्वती -प्रपातो की।
उतर के रूहे झरनो में -
आज फिर हँसाया कोई।।
बांसुरी तो है बाँस की,
मगर है स्रोत -ओज-आस की।
बाँसुरी की तान छेड़ के-
प्रेम -रस पिलाया कोई।।

बवूराये हो...



देखि के अकसवा मा उमड़ल बदरिया,
बवूराये हो चित मोरा सवरिया।।
     झूला झूलत सुधि तोहरी आवे,
     तोहरे सिवा मोहे कछु नहि भावे।
     चिहुँक उठे जियरा जब चमके बिजुरिया-
     बवूराये हो....
नहीं कोई चिट्ठी ना कोई सनेसवा,
भूलि गयो प्यारे तू जाई के बिदेसवा।
हुकि उठे सुनि-सुनि के रेल कै बंसुरिया-
बवूराये हो....
   नदी -पेड़-पर्वत पे छायी जवानी,
  हरी-भरी धरती कै अनुपम कहानी।
  उमड़े जियरवा लखि नदी कै लहरिया-
  बवूराये हो....
वन-उपवन में पंछी कै कलरव,
नर्तन मयूरा कै कुसुमित पल्लव।
लगै नीक नाही बड़ सुन्दर फुलवरिया-
बवूराये हो....
  बरखा त हवै सब ऋतुवन कै रानी,
रिम-झिम फुहारन कै अदभुत रवानी।
झुलसे बदनवा जब बरसै बदरिया-
  बवूराये हो....
बिरहा अगन कै लौ नहि दिखती,
चारो पहर पर रहती सुलगती।
समुझै जलन बस पगली बावरिया-
बवूराये हो चित मोरा सावरिया।।

राही, ज़रा...


जीवन की डोर कट जायेगी,
कोई सम्पति न तेरे संग जायेगी।
राही, ज़रा देख के चलो।।
     इस दुनिया का रंग निराला,
कोई यहां गोरा तो कोई यहां काला।
रंग में भंग पड़ जायेगी-
राही, ज़रा....।।
   आज अभी जो कर सकते हो,
  आगे बढ़कर कर लो।
  कल तो नगरी लुट जायेगी-
  राही, ज़रा....।।
बिना भरम के, बिना मरम के,
बढ़ते जाओ भाई।
वरना,मंजिल छूट जायेगी-
राही, ज़रा....।।
  इक पल रोना,इक पल हँसना,
  हँसना-रोना जीवन।
  सिर्फ़ हँसने से बात बन जाएगी-
  राही, ज़रा....।।
नीचे देखो,ऊपर देखो,
देखो, दायें-बायें।
ठोकर से मुक्ति मिल जायेगी-
रही,ज़रा.…..।।
  राहें हों पथरीली फिर भी,
  चलो,तू बन्धु सँभल के।
  खुशियों से झोली भर जायेगी-
राही,ज़रा देख के चलो।।

मेरे दोस्त तुम ...



मेरे दोस्त तुम क्या से क्या हो गए हो?
कल तक थे अपने अब ख़फा हो गए हो
मधुवन की कलियाँ, गावों की गलियाँ
नदी के किनारे, कुदरती नज़ारे,
सभी के सभी तो हैं पहले ही जैसे―
केवल तुम्ही बस दफ़ा हो गए हो  |
                     मेरे दोस्त तुम .....
आई दिवाली खुशियां मनाली
खुशियो से मन की पीड़ा मिटा ली
वही थी अमावस , वही थी सजावट।
मगर बस तुम्ही बेवफा हो गए  हो।
                      मेरे दोस्त तुम .....
बहती हवा पूछे तेरा ठिकाना ,
समझ में न आये , क्या है बताना ।
चारों दिशाएँ   नहीं कुछ बताएं ,
न  जाने  कहाँ  गुमशुदा  हो  गए  हो।
                       मेरे दोस्त तुम....
फ़िज़ाओं  में खुशबू चमन है बिखेरे,
हैं गाते परिन्दे सबेरे, सबेरे ।
मधुर रागिनी से विकल चित हो मेरा,
भाये न चंदा , तुम जुदा हो गए हो।
                       मरे दोस्त तुम...
झरनो की थिरकन , भौरों का गुँजन,
पावस की रिम- झिम ,मयूरो का नर्तन।
दबे पॉव देते हैं एहसास तेरा-
मानो तुम्ही अब ख़ुदा हो गए हो ।
                         मेरे दोस्त तुम...। ।