Saturday, December 1, 2018

जीवन-बगिया...


जीवन-बगिया महकेगी कैसे जो तू संग नहीं,
फूलों का बिस्तर चुभे जैसे नश्तर कोई उमंग नहीं।।
                                               जीवन-बगिया....
सावन भी आया,छायीं घटायें,
चंचल बहे पुरुवाई।
फिर भी नहीं मेरे मन को चैन है,
ऋतु भी बहारों की आयी।
     रङ्गों में कोई रङ्ग नहीं।।
                       जीवन-बगिया....
कोयल के मीठे बोल न भाये,
न भाये पपीहा की बानी।
चन्दन का लेपन जलन है अगन की,
बूढ़ी भयी अब जवानी।
    वसूलों का कोई ढंग नहीं।।
                  जीवन-बगिया....
बादल व बरखा,पंछी व पर्वत,
सागर व सरिता,सुर-सरगम सब।
फीके पड़ गये सारे नज़ारे,
भाये न,बरसे अमृत भी अब।
     अब तो उड़े मन-विहंग नहीं।।
                 जीवन-बगिया....
भौरे हैं मायूस,कलियाँ उदासी,
साजन की गलियाँ हैं सूनी।
अम्बर पे सब हैं,सितारे व सूरज,
फीकी मगर रौशनी।
     सागर में कोई तरंग नहीं।।
               जीवन-बगिया महकेगी....

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