गर आदमी न होता एहसान फ़रामोश,
होता यही यक़ीनन सरताज़ ज़मी का।
गर जानती ये दुनिया क्या फ़र्ज़-ए-इंसान?
होता लहू न इतना बरबाद सभी का ।।
गर आदमी न होता....
ऋतु में,हवा ,फ़ज़ा में होता अगर वजूद,
होता चमन यक़ीनन आबाद कभी का।।
गर आदमी न होता....
होता अगर जो मेल कभी तल्ख़ -मधुर का
यक़ीनन ये तल्ख़ होता मधुर स्वाद कभी का।।
गर आदमी न होता....
होता अगर निशंक ज़माने में कोई यहाँ,
यक़ीनन,वतन ये होता आज़ाद कभी का।।
गर आदमी न होता....
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