Saturday, December 1, 2018

गर आदमी न होता...


गर आदमी  न होता एहसान फ़रामोश,
होता यही यक़ीनन सरताज़ ज़मी का।
         गर जानती ये दुनिया क्या फ़र्ज़-ए-इंसान?
         होता लहू न इतना बरबाद सभी  का ।।
                                    गर आदमी न होता....
ऋतु में,हवा ,फ़ज़ा में होता अगर वजूद,
होता चमन यक़ीनन आबाद कभी  का।।
                             गर आदमी न होता....
       होता अगर जो मेल कभी तल्ख़ -मधुर का
       यक़ीनन ये तल्ख़ होता मधुर स्वाद कभी का।।
                               गर आदमी न होता....
होता अगर निशंक ज़माने में कोई यहाँ,
यक़ीनन,वतन ये होता आज़ाद कभी का।।
                    गर आदमी न होता....

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