काम को,क्रोध को,लोभ को,मोह को,
गर जहां से मिटा दें तो क्या बात है।
राह में जो गिरा,गिर के उठ ना सका-
गर गिरे को उठा दें तो, क्या बात है।।
रोज जीते हैं हम सिर्फ़ अपने लिये,
ऐसा जीना भला कैसा जीना हुआ।
सिर्फ़ तन के लिये ना,वतन के लिये,,
जो जिये हम यहां गर तो,क्या बात है।।
गर गिरे को उठा दें तो....
इक बादल उठा चाँद को ढक लिया,
चाँद फिर भी अंधेरे में रोशन रहा।
इस तरह गर्दिशे ग़म तो आते ही हैं,
दोस्ती इनसे कर लें तो,क्या बात है।।
गर गिरे को उठा दें तो....
जो जनम ले लिया जो यहां आ गया,
सबके जीने का हक़ है बराबर यहां।
हक़ बराबर रहे, है ये ख्वाहिशे ख़ुदा,
आदमी मान ले गर तो,क्या बात है।।
गर गिरे को उठा दें तो....
बात तो बात है बात में कुछ नहीं,
बात ही बात में बात हो जाती है।
बात बिगड़े न पाये, यही बात है,
बात को गर बना दें तो,क्या बात है।।
राह में जो गिरा गिर के उठ ना सका-
गर गिरे को उठा दें तो,क्या बात है।।
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