Saturday, December 1, 2018

इक मोड़ ज़िन्दगी में...


इक मोड़ ज़िन्दगी में,
आया है आज  मेरी।
ख्वाबों की रोशनी को-
ढक ली निशा अंधेरी।।
                सूरज की जिस किरन पे,
                मुझे था बड़ा भरोसा।
                 धूमिल भई किरन वो-
                  छायी घटा  घनेरी।।
सरिता जो बह रही थी,
आशा-उमंग की उर में।
बहने लगी शिथिल वो-
गिरि-खण्ड पा करेरी।।
               कलरव जो पंछियों के,
               अबतक रहे सुहावन।
                मायूस कर  दिए वो-
                बीती व्यथा  उकेरी।।
पर्वत पे उड़ते बादल,
मनमीत जो थे   मेरे।
अब  तो नहीं  बरसते-
रूखी गली  है   मेरी।।
              मेरी ज़िंदगी  का  उपवन,
              फूलों  से महँके  महँ-महँ।
               यह आस थी हृदय  में-
               कि  चहके  चमन-फुलेरी।।
ले  आस  जी  रहा  हूँ,
विश्वास  जी  रहा   हूँ।
छट  जायेगा  अंधेरा-
रवि,रश्मि  पा  के  तेरी।।
       इक मोड़  ज़िन्दगी  में....।।

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