इक मोड़ ज़िन्दगी में,
आया है आज मेरी।
ख्वाबों की रोशनी को-
ढक ली निशा अंधेरी।।
सूरज की जिस किरन पे,
मुझे था बड़ा भरोसा।
धूमिल भई किरन वो-
छायी घटा घनेरी।।
सरिता जो बह रही थी,
आशा-उमंग की उर में।
बहने लगी शिथिल वो-
गिरि-खण्ड पा करेरी।।
कलरव जो पंछियों के,
अबतक रहे सुहावन।
मायूस कर दिए वो-
बीती व्यथा उकेरी।।
पर्वत पे उड़ते बादल,
मनमीत जो थे मेरे।
अब तो नहीं बरसते-
रूखी गली है मेरी।।
मेरी ज़िंदगी का उपवन,
फूलों से महँके महँ-महँ।
यह आस थी हृदय में-
कि चहके चमन-फुलेरी।।
ले आस जी रहा हूँ,
विश्वास जी रहा हूँ।
छट जायेगा अंधेरा-
रवि,रश्मि पा के तेरी।।
इक मोड़ ज़िन्दगी में....।।
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