देखा है ज़माने में कैसे लोग बदलते हैं?
सावन के मौसमों में ये आग बरसते हैं।।
खंज़र तो दुश्मनों ने ग़ुस्से में चुभोया है,
हँस-हँस के दोस्ती को हरपल ये कुतरते हैं।।
देखा है ज़माने में....
सीखेगा कोई इनसे क्या जीने का सलीक़ा!
पीके शराबे उल्फ़त नफ़रत ये उगलते हैं।।
देखा है ज़माने में....
मौसम के बदलने में कुछ वक़्त तो लगता है,
तब्दीलियों में इनके सब लमहे गुजरते हैं।।
देखा है ज़माने में....
दिन में हैं राहबर ये रातों में राहजन हैं,
इनसे ख़ुदा बचाये मिल-मिल के ये छलते हैं।।
देखा है ज़माने में....
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