Monday, November 26, 2018

बाँसुरी बजाया कोई...


बांसुरी बजाया कोई,
आज याद आया कोई ।
भूली,बिसरी यादों में-
हल- चल मचाया कोई।।
मायूस होके ख्वाहिशें सब,
जाने कब कहाँ खो गईं?
सोती हुईं ख्वाहिशों को-
आज फिर जगाया कोई।।
थम गयीं थीं घंटियां जो
सारी मन के मंदिर की।
उन्हीं सारी घंटियों को-
आज फिर बजाया कोई।।
बीती हुयी घड़ियों की,
खट्टी-मीठी बातें जो।
खोई रहीं जाने कहाँ-।
आज फिर सुनाया कोई।।
बांसुरी की टेर सुन के,
भौरे गुन गुनाने लगे।
चमन की सारी कलियो को-
आज फिर खिलाया कोई।।
थम गई थी रुन-झुन जो,
पर्वती -प्रपातो की।
उतर के रूहे झरनो में -
आज फिर हँसाया कोई।।
बांसुरी तो है बाँस की,
मगर है स्रोत -ओज-आस की।
बाँसुरी की तान छेड़ के-
प्रेम -रस पिलाया कोई।।

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