Monday, November 26, 2018

राही, ज़रा...


जीवन की डोर कट जायेगी,
कोई सम्पति न तेरे संग जायेगी।
राही, ज़रा देख के चलो।।
     इस दुनिया का रंग निराला,
कोई यहां गोरा तो कोई यहां काला।
रंग में भंग पड़ जायेगी-
राही, ज़रा....।।
   आज अभी जो कर सकते हो,
  आगे बढ़कर कर लो।
  कल तो नगरी लुट जायेगी-
  राही, ज़रा....।।
बिना भरम के, बिना मरम के,
बढ़ते जाओ भाई।
वरना,मंजिल छूट जायेगी-
राही, ज़रा....।।
  इक पल रोना,इक पल हँसना,
  हँसना-रोना जीवन।
  सिर्फ़ हँसने से बात बन जाएगी-
  राही, ज़रा....।।
नीचे देखो,ऊपर देखो,
देखो, दायें-बायें।
ठोकर से मुक्ति मिल जायेगी-
रही,ज़रा.…..।।
  राहें हों पथरीली फिर भी,
  चलो,तू बन्धु सँभल के।
  खुशियों से झोली भर जायेगी-
राही,ज़रा देख के चलो।।

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