आज दिवस सम्बन्धों का मनाना पड़ता है।
जनक-जानकी-रिश्ते को जताना पड़ता है।।
पिता गगन गम्भीर और माता है पृथ्वी जैसी,
इस विचार की आज तो जानो हो गयी ऐसी-तैसी।
भाई-बहन हैं दीपक-बाती को बताना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों.....।।
पिता-पुत्र-सम्बन्ध मित्रवत,सोलह का जब बेटा,
ऐसा लिखा विचार शास्त्र में,कहते शास्त्र-प्रणेता।
अपनी इसी पुरानी थाती को -बचाना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों.....।।
परत धूल की जमी हुयी है,मानो अब सम्बन्धों पर,
पड़ती नहीं दृष्टि अब जानो,कुल के सब अनुबन्धों पर।
कर के पुनि सम्बन्ध-स्मरण माटी को-हटाना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों......।।
पूरब के प्राचीन मूल्य पर, दखल हो गया पश्चिम का,
भौतिकवादी आपा-धापी,स्वार्थ भंगिमा बंकिम का।
कुप्रभाव से बिछड़े जीवन-साथी को-मिलाना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों........।।
ऐसी प्रथा पश्चिमी मित्रों,शोभा बनी वतन की,।
दिवस एक पर स्मृति रखना,प्रथा हुयी शुभ चिंतन की।
अग्नि-कुण्ड में कुत्सित परिपाटी को-जलाना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों.........।।
संस्कृति-मूल्य स्वतन्त्र देश के,होते एक धरोहर हैं,
यही बनाते किसी मुल्क़ को,अनुपम और मनोहर हैं।
दिवस एक ले शपथ सभी बरबादी को-भगाना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों........।।
वतन-स्वतन्त्रता-दिवस मनाना,सबसे उत्तम यारों,
पंख पसारे खुले गगन में,उड़ि खग सक्षम यारों।
जन-जन में बस सुप्त बोध आज़ादी को-जगाना पड़ता है।।
आज दिवस सम्बन्धों का मनाना पड़ता है।।
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