राष्ट्र्वाद की भ्रष्टवाद पर अद्भुत विजय हुयी है,
विजय जादुई देख कर दुनिया चकित हुयी है।
लोकतंत्र का नवल जागरण लिया पुनः अंगड़ाई-
वंशवाद औ जातिवाद की घृणित नीति अब छोड़ो।।
सब जन मिलकर एकसाथ नव संस्कृति-दीप जलाओ,
स्वार्थ निशा का फैला जन में तम-अंधियार मिटाओ।
जन-कल्याण से बढ़कर कोई दूजा धर्म नहीं है-
सड़े-गले-निष्प्राण मज़हबी बन्धन को अब तोड़ो।।
विगत यामिनी नव प्रभात तैयार तुम्हारे स्वागत में,
नयी चेतना का लेकर उपहार तुम्हारे स्वागत में।
नव विकास का नवल गीत अब मुखरित हो सब गाओ-
मानवता की स्वतंत्र डोर में बंधकर रिश्ता जोड़ो।।
सदा रही इस देश की धरती अति पावन उपकारी,
जो भी आया दिया शरण इसने बनकर हितकारी।
तजकर अब संकीर्ण भाव को जनहित में लग जाओ-
वक़्त आ गया वर्ग-भेद के चिंतन से मुख मोड़ो।।
शिक्षालय-रुग्णालय सुधरें,सुधरें सभी जलाशय,
प्रकृति-कोष,पशु-पक्षी के प्रति स्वस्थ हो सबका आशय।
वृक्ष-वनस्पति,सरिता-सागर से सम्बन्ध पुराना-
पर्यावरण जो दूषित करते उनका भण्डा फोड़ो।।
भाषा-विवाद संकेत अशुभ बहु होता है
ज्ञान विविध भाषा का रखना सुखकर शुभ होता है।
मानव-चिंतन,बोली-भाषा,मत बांधो सीमा में-
चिंतन जो संकीर्ण हैं रखते,उनकी दिशा मरोड़ो।।
वंशवाद औ जातिवाद की घृणित नीति अब छोड़ो।।
No comments:
Post a Comment