Saturday, July 27, 2019

लिया है समझ जो...



लिया है समझ जो किताबों की भाषा,
दरख़्तों की भाषा,परिन्दों की भाषा।
वही असली प्रेमी है क़ुदरत का मित्रों-
उसे ज़िन्दगी में न होती  निराशा।।
                 लिया है समझ जो.......।।
बहुत ही नरम दिल का होता वही है,
नहीं भाव ईर्ष्या का रखता कभी है।
बिना भ्रम समझता वो इन्सां मुकम्मल-
सरिता-समन्दर-पहाड़ों की  भाषा।।
                  लिया है समझ जो.......।।
जैसा भी हो, वो है जीता ख़ुशी से,
न शिकवा-शिकायत वो करता किसी से।
ज़िन्दग़ी को ख़ुदा की अमानत समझता-
लिए दिल में रहता वो अनुराग-आशा।।
                 लिया है समझ जो........।।
खेत-खलिहान,बागों-बगीचों में रहता,
सदा नूर रब का अनूठा है  बसता।
यही राज़ जिसने है समझा औ जाना-
मुश्किलें भी न उसको हैं करतीं हताशा।।
                 लिया है समझ जो........।।
हरी घास पे सारी शबनम की बूंदें,
एहसास मख़मल का दें आँख मूंदे।
रवि-रश्मियों में नहायी सुबह तो-
होती प्रकृति की अनोखी परिभाषा।।
                 लिया है समझ जो........।।
हक़ मालिकाना है क़ुदरत का केवल,
बसाना-गवांना बस अपने ही सम्बल।
गर हो गया क़ायदे क़ुदरत उलंघन-
ज़िन्दगी तरु कटे बिन कुल्हाड़ी-गड़ासा।।
                लिया है समझ जो.........।।
प्रकृति से परे कुछ नहीं है ये दुनिया,
प्रकृति से ही बनती-बिगड़ती है दुनिया।
नहीं होगा सम्मान विधिवत यदि इसका-
जायगा यक़ीनन थम, ये जीवन-तमाशा।।

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