Saturday, July 13, 2019

कोई किसी का दुनिया में...



कोई किसी का दुनिया में होता नहीं सगा,
अन्तिम घड़ी में रिश्ते,देते हैं सब दगा।
मां-बाप-भाई-भगिनी,होते हैं चार दिन के-
पिंजरे में क़ैद पंछी,हो जाता झट दफ़ा।।
      कलियाँ चमन में खिल के,कुछ पल में बिखरतीं,
      रवि-रश्मियाँ प्रखर भी,हर शाम को ढलतीं।
      हो जातीं दफ़्न सांसें, झट-पट बिना रुके-
      रक्खा जिन्हें था सबने,सीने से यूँ लगा।।
सम्बन्ध अग्नि-जल का,शाश्वत-यथार्थ है,
आकाश औ पवन का,अविरल-अबाध है।
सरिता का जल है मिलता,सागर से जा गले-
निःस्वार्थ प्रेम-रस में,सम्बन्ध यह पगा।।
      बर्फीली चोटियों पे,चन्दा की जो चमक,
      फूलों पे भनभनाते,भौरों की जो भनक।।
      कल थी औ आज है,रहेगी यह सदा-
     कोई नहीं सकेगा,इसको कभी भगा।।
ब्रह्म से अक्षर औ अक्षर से ब्रह्म है
सम्बन्ध यह चिरातन, इसमें न छद्म है।
ब्रह्म को तो केवल,साक्षर ही समझता-
कोई सके ना ब्रह्म के,अस्तित्व को डिगा।।
     सृष्टि के पहले औ न बाद सृष्टि के, 
     न था,न कुछ रहेगा,सिवाय वृष्टि के।
     बस ब्रह्म ही है शाश्वत औ ब्रह्म रहेगा-
     अभिद-अमिट-अक्षत-असुप्त औ जगा।।

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