Saturday, July 27, 2019

निष्काम कर्म-फल होता...



होती है ज़रूरत त्याग की रिश्तों को निभाने में।
निष्काम कर्म-फल होता है अति मीठा खाने में।।
     निज सुख-चिन्तन होता पशुवत दुनिया माने है,
     पर-उपकार ही लक्ष्य हो जिनका सन्त-सुजाने हैं।
     सुख पाती माँ स्वयं जाग सुत-सुता सुलाने में।।
                                निष्काम कर्म-फल होता.....।।
खा प्रहार पत्थर का तरुवर देता फल मनचाहा,
कभी न कहता सिंधु नीर दे,तुमने कहर है ढाहा।
करे कृपणता कबहुँ न नीरद जल बरसाने में।।
                                निष्काम कर्म-फल होता.....।।
बिना कहे नित पवन है बहता जीव-जन्तु-हितकारी,
करके हरण निशा-तम चन्दा बनता जग-सुखकारी।
स्वयं को माने धन्य भाष्कर,दिवस-उजाला लाने में।।
                                निष्काम कर्म-फल होता.....।।
अन्न-सम्पदा पृथ्वी देती मुक्त हस्त से जन-जन को,
बिना मोल सुन कलरव मिलता,सुख-सुक़ून हर तन-मन को।
लिपट पतंगा दीप-शिखा से पाता सुख जल जाने में।।
                                निष्काम कर्म-फल होता.....।।
मिले इत्र सी खुशबू,हर वक्त सुगन्धित मधुवन से,
कोयल गाती गीत सुरीला,बैठ शिखा तरु उपवन से।
चन्दन करे कुठार सुगन्धित,यद्यपि कि कट जाने में।।
                                 निष्काम कर्म-फल होता.....।।
गिरि के उच्च शिखर से गिरता,जल-प्रपात मन भाये,
मेघाच्छन्न गगन को चित-मन,निरखि-निरखि हरषाये।
मिले प्रकृति को सुख असीम,निज छटा दिखाने  में।।
       निष्काम कर्म -फल होता है अति मीठा खाने में।।

No comments:

Post a Comment