श्रृंगार और सावन दोनों का मेल अनुपम,
गोरी औ गाँव-आँगन सँवरे जब बरसे झम-झम।
तट-बन्ध तक उमड़ के जब भी है बहती सरिता-
नायाब सुख है देता पानी-पवन का संगम।।
कजरी के बोल रसमय,लयबद्ध मोर-नर्तन,
सीवान-गाँव-गलियों में,चारो तरफ है नन्दन।
अँगड़ाइयाँ हैं लेतीं जब भी फुहारें रिम-झिम-
लगता है करने नर्तन,विरही हृदय भी छम-छम।।
नायाब सुख है देता.........।।
मन का पखेरू चाहे उड़ के गगन को छू ले,
अमरित जो नभ से टपके,पी के गमों को भूले।
उड़-उड़ के बादलों सँग, इठला के जग से कह दे-
सावन न हो तो तेरा,कोई नहीं है दम-ख़म।।
नायाब सुख है देता.......।।
धानी चुनर सी लहरें,खेतों में सारी फसलें,
जी चाहता झपट सुख,सारा धरा का धर लें।
सावन के सांवरेपन में,निश्चित है बात कुछ तो-
रहता भिगोता बादल, आँचल अवनि का हर-दम।।
नायाब सुख है देता........।।
झूले का यह महीना,ऋतुओं का है नगीना,
जल दे के इस धरा को,करता सुखी है जीना।
इसकी कृपा से धरती,सोना सदा उगलती-
आबो-हवा हो शीतल,जाता है जिसमे मन रम।।
नायाब सुख है देता.......।।
अभिषेक जल से होता,सावन में श्री शिवा का,
जल-वृष्टि का महीना यह,शीतल पवन-हवा का।
है प्रेमियों व भक्तों का अद्भुत यही ठिकाना-
इसे भाव-गीत भाये,भोले की बोली बम-बम।।
नायाब सुख है देता,पानी-पवन का संगम।।
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