Saturday, July 13, 2019

पत्थर लुढ़क-लुढ़क के...



पत्थर लुढ़क-लुढ़क के भगवान बनता है,
शैतान खा के ठोकर,इन्सान बनता है।
करके मदद यतीमों की निःस्वार्थ भाव से-
इन्सान अपने मुल्क़ की पहचान बनता है।।
    होती हिना है सुर्ख़,पत्थर-प्रहार से,
    धीरज न खोवे सैनिक,सीमा की हार से।
    अपने वतन की माटी पर,प्राण कर निछावर-
    बलिदान की मिसाल वो, जवान बनता है।।
माता समान माटी, माटी समान माता,
परम पुनीत ऐसा संयोग रच विधाता।
जीवन में हर किसी को,मोकाम यह दिया है-
कर के नमन जिन्हें वो,महान बनता है।।
    लेना अगर सबाब, तुमको ख़ुदा का है,
    कर दो उजाला मार्ग जो,तम की घटा का है।
    भटके पथिक को रौशनी,दिखाते रहो सदा-
    करने वाला ऐसा जाहिर जहान बनता है।।
वादा किसी को करके,मुकरना न चाहिए,
पद उच्च कोई पा के,बदलना न चाहिए।
धन-शक्ति के घमण्ड में,औक़ात जो भूला-
इन्सान वो समझ लो,हैवान बनता है।।    
महिमा कभी भी सिंधु की,घटते नहीं देखा,
    घमण्ड को समर्थ में,बढ़ते नहीं देखा।
   देखा नहीं सज्जन को कभी,कड़ुवे वचन कहते-
   नायाब इस ख़याल से ही,ईमान बनता है।।
जल पे लक़ीर खींचना, सम्भव नहीं यारों,
पश्चिम उगे ये भास्कर,सम्भव नहीं यारों।
आना अगर है रात को तो आ के रहेगी-
निश्चित प्रभात होने का,विधान बनता है।।
    ऐसे ही ज़िन्दगी की गाड़ी को हाँकना,
    चलते रहो बराबर,पीछे न झाँकना।
    दीये की लौ समक्ष,तूफ़ान भी झुकता-
    तूफ़ान भी दीये का,क़द्रदान बनता है।।

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