नहीं निशा यदि होती जग में,होता नहीं प्रभात कभी,
बिन प्रभात नहिं जग को मिलती,जीवन की सौगात कभी।
तमाच्छन्न ब्रह्माण्ड भी रहता,एक-अकेला-वीराना-
जीव-जन्तु बिन सूना-सूना,ब्रह्म की न होती बात कभी।।
नहीं निशा यदि...........।।
रजनीकान्त बिना रजनी के,पूजनीय कैसे होता?
निज प्रकाश किरणों से दिनकर,कैसे भूमण्डल धोता?
नहीं रात्रि यदि होती तो ये तारे कभी नहीं दिखते-
ख़ुद प्रकाश में दिखलाने की,होती नहिं औक़ात कभी।।
नहीं निशा यदि..........।।
देती राहत रात ही केवल,जलचर-थलचर-नभचर को,
धरती से अम्बर तक मिलता,सुख-सुक़ून हर वपुधर को।
अर्जित करते सभी हैं प्राणी,सोकर ही नव ऊर्जा को-
कभी न ज़िन्दगी जीवन पाती, यदि नहिं होती रात कभी।।
नहीं निशा यदि.........।।
परम पवित्र पूजा की बेला,यह बेला अरदास की,
यही बाइबिल औ क़ुरान की,आयत के अभ्यास की।
यद्यपि कि फँस जाते भौंरे,रात कमल-पंखुड़ियों में-
फिर प्रभात कर करे मुक्त,नहिं होता प्रणाघात कभी।।
नहीं निशा यदि.........।।
पूनम की ही रात को चन्दा,मिलता गले समन्दर से,
बाँह पसारे सिन्धु भी मिलता,मुदित मना अभ्यन्तर से।
चित्ताकर्षक-मधुर-मनोहर,ऐसा संगम कैसे होता?
यदि रजनी निज आँचल ताने,देती नहिं यूँ साथ कभी।।
नहीं निशा यदि.........।।
करे संयमी निशा-जागरण,जन-साधारण सोते हैं,
सन्त-संयमी पाये सदगति, मूरख जन फल खोते हैं।
गीता का यह सन्देश है जिसने,जाना वही सयाना है-
जल-सिंचन बिन किसी भी तरु पर,नहिं उगता फल-पात कभी।।
नहीं निशा यदि होती जग में,होता नहीं प्रभात कभी।।