आया राखी का त्यौहार,
लेके खुशियाँ हज़ार।
भइया-बहना का प्यार,
रिम-झिम सावन की फुहार-आया राखी का त्यौहार।।
रंग-बिरंगी सजी हैं राखी,
हाट-बाज़ार-गलियन में।
लहराते-मुस्काते जैसे,
कुसुम लगें बगियन में।
लेके आभा अपरम्पार-आया राखी का त्यौहार।।
चुनतीं हैं राखी सब बहनें,
देखो सम्हल-सम्हल के।
भइया के मन भाये राखी,
निरखें बदल-बदल के।
पहने अरमानों का हार-आया राखी का त्यौहार।।
प्रेम का धागा हाथ में बाँधे,
बन्धन जनम-जनम का।
चन्दन-रोरी भाल लगाये,
पाये प्यार बहन का।
भइया देता उपहार-आया राखी का त्यौहार।।
राखी बाँधी लक्ष्मीबाई,
जो कर्मा सिंह समर को।
दिया हुंकार उसी ने तब,
भारत-स्वातन्त्र्य ग़दर को।
अनुपम माटी का प्यार-आया राखी का त्यौहार।।
पतले इन धागों में मानो,
अद्भुत शक्ति है प्यारे।
मिल कर तोड़ सके न इनको,
जग के अन्धड़ सारे।
इनमें सतत बहे रसधार-आया राखी का त्यौहार।।
लेके खुशियाँ हज़ार।।
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