बन्दउँ सुचिमन किसुन कन्हाई।
नाथ चरन धरि सीष नवाई ।।
मातु देवकी पितु बसुदेवा।
नन्द के लाल कीन्ह गो-सेवा।।
राधा-गोपिन्ह के चित-चोरा।
नटवर लाल नन्द के छोरा।।
गाँव-गरीब-गो-रच्छक कृष्ना।
गीता-ज्ञान हरै जग-तृष्ना ।।
मातु जसोदा-हिय चित-रंजन।
बन्धन मुक्त करै प्रभु-बन्दन ।।
कृष्नहिं महिमा बहु अधिक,करि नहिं सकहुँ बखान।
सागर भरि लइ मसि लिखूँ, तदपि न हो गुनगान ।।
जय-जय-जय हे नन्द किसोरा।
निसि-दिन भजन करै मन मोरा।।
पुरवहु नाथ आस अब मोरी।
चाहूँ कहन बात मैं तोरी ।।
कुमति-कुसंगति-दुर्गुन-दोषा।
भागें जे प्रभु करै भरोसा ।।
कृष्न-कन्हाइ-देवकी-नन्दन।
जसुमति-लाल,नन्द के नन्दन।।
चहुँ दिसि जगत होय जयकारा।
नन्द के लाल आउ मम द्वारा ।।
हे चित-चोर व मक्खन चोरा।
बासुदेव के नटखट छोरा ।।
मेटहु जगत सकल अँधियारा।
ज्ञान क दीप बारि उजियारा ।।
सुनहु सखा अर्जुन तुमहिं, आरत बचन हमार।
चहुँ-दिसि असुर बिराजहीं,आइ करउ संघार ।।
श्रीकृष्ण का प्राकट्य-
रोहिनि नखत व काल सुहाना।
रहा जगत जब प्रभु भय आना।।
गगन-नखत-ग्रह-तारे सबहीं।
सान्त व सौम्य-मुदित सब भवहीं।।
भयीं दिसा बहु निरमल मुदिता।
तारे रहे स्वच्छ नभ उदिता ।।
निरमल-सुद्ध नदी कै नीरा।
हरहिं कमल सर खिल जग-पीरा।।
बन-तरु-बिटप पुष्प लइ सोभित।
पंछी-चहक सुनत मन मोहित ।।
भन-भन करहिं भ्रमर लतिका पे।
सीतल बहहि पवन वहिंठा पे ।।
पुनि जरि उठी अगिनि हवनै कै।
कनसै रहा बुझाइ जिनहिं कै ।।
सुर-मुनि करैं सुमन कै बरसा।
होइ अनन्दित हरसा-हरसा ।।
नीरद जाइ सिन्धु के पाहीं।
गरजहिं मन्द-मन्द मुस्काहीं।।
परम निसीथ काल के अवसर।
(कृष्ण-जन्माष्टमी के अवसर पर मेरे द्वारा लिखित श्रीकृष्णचरितबखान से उधृत वन्दना एवम श्रीकृष्ण का प्राकट्य नामक अध्यायों से प्रस्तुत कुछ चौपाइयां तथा दोहे)