Saturday, August 24, 2019

श्रीकृष्णचरितबखान



            बन्दउँ सुचिमन किसुन कन्हाई।
            नाथ चरन धरि सीष नवाई ।।
मातु देवकी पितु बसुदेवा।
नन्द के लाल कीन्ह गो-सेवा।।
           राधा-गोपिन्ह के चित-चोरा।
            नटवर लाल नन्द के छोरा।।
गाँव-गरीब-गो-रच्छक कृष्ना।
गीता-ज्ञान हरै जग-तृष्ना ।।
         मातु जसोदा-हिय चित-रंजन।
         बन्धन मुक्त करै प्रभु-बन्दन ।।
कृष्नहिं महिमा बहु अधिक,करि नहिं सकहुँ बखान।
सागर भरि लइ मसि लिखूँ, तदपि न हो गुनगान ।।
        जय-जय-जय हे नन्द किसोरा।
       निसि-दिन भजन करै मन मोरा।।
पुरवहु नाथ आस अब मोरी।
चाहूँ कहन बात मैं  तोरी  ।।
       कुमति-कुसंगति-दुर्गुन-दोषा।
        भागें जे प्रभु करै  भरोसा  ।।
कृष्न-कन्हाइ-देवकी-नन्दन।
जसुमति-लाल,नन्द के नन्दन।।
      चहुँ दिसि जगत होय जयकारा।
      नन्द के लाल आउ मम द्वारा ।।
हे चित-चोर व मक्खन चोरा।
बासुदेव के नटखट छोरा  ।।
      मेटहु जगत सकल अँधियारा।
      ज्ञान क दीप बारि उजियारा  ।।
सुनहु सखा अर्जुन तुमहिं, आरत बचन हमार।
चहुँ-दिसि असुर बिराजहीं,आइ करउ संघार ।।
           श्रीकृष्ण का प्राकट्य-
रोहिनि नखत व काल सुहाना।
रहा जगत जब प्रभु भय आना।।
          गगन-नखत-ग्रह-तारे सबहीं।
          सान्त व सौम्य-मुदित सब भवहीं।।
भयीं दिसा बहु निरमल मुदिता।
तारे रहे स्वच्छ नभ  उदिता  ।।
       निरमल-सुद्ध नदी कै नीरा।
       हरहिं कमल सर खिल जग-पीरा।।
बन-तरु-बिटप पुष्प लइ सोभित।
पंछी-चहक सुनत मन मोहित  ।।
      भन-भन करहिं भ्रमर लतिका पे।
      सीतल बहहि पवन वहिंठा  पे ।।
पुनि जरि उठी अगिनि हवनै कै।
कनसै रहा बुझाइ जिनहिं कै ।।
      सुर-मुनि करैं सुमन कै बरसा।
      होइ अनन्दित हरसा-हरसा ।।
नीरद जाइ सिन्धु के पाहीं।
गरजहिं मन्द-मन्द मुस्काहीं।।
     परम निसीथ काल के अवसर।

(कृष्ण-जन्माष्टमी के अवसर पर मेरे द्वारा लिखित श्रीकृष्णचरितबखान से उधृत वन्दना एवम श्रीकृष्ण का प्राकट्य नामक अध्यायों से प्रस्तुत कुछ चौपाइयां तथा दोहे)

फहरा आज तिरंगा



लालकिला से लालचौक तक,फहरा आज तिरंगा,
रावी-सतलज-सिन्धु-झील डल, का जल हो गया चंगा।
महानदी-कृष्णा-कावेरी, केन-बेतवा-चम्बल-
जश्न मनायें व्यास-नर्बदा,सरयू-यमुना-गंगा।।
                                  फहरा आज तिरंगा........।।
जम्मू औ लद्दाख-काश्मीर, सब मिल नाचें-गायें,
भारत माता के चरणों में,सब जन शीष झुकायें।
लिये राष्ट्र-ध्वज निज हाथों में,चहुँ-दिशि भारतवासी-
महापर्व पर झूमें जैसे,दीपक सङ्ग पतंगा।।
                                  फहरा आज तिरंगा........।।
स्वर्ग समान कश्मीर की घाटी,प्राप्त कर लिया गौरव,
पुनः मिला सम्मान उसे वो,जो था अभी असम्भव।
जकड़े थी पाँवों को उसके,अबतक जो कानूनी धारा-
टूट गयी बेड़ी वो झट-पट,बिना सियासी पंगा।।
                                 फहरा आज तिरंगा........।।
बहुत दिनों की आस अटल की,हो अखण्ड भारत अपना,
फहर गया घाटी में तिरंगा,पूर्ण हो गया  सपना।
होंगे परम प्रसन्न जन-नायक,छोड़ हमें जो चले गये।
देव-लोक में होंगीं खुशियाँ, खेल-कूद-हुड़दंगा।।
                                 फहरा आज तिरंगा........।।
मोदी-शाह की जोड़ी ने मिल,राष्ट्र अखण्ड बनाया,
काश्मीर-लद्दाख का काला,धब्बा शीघ्र मिटाया।
एक निशान,प्रधान एक का,पूर्ण हुआ प्रण देखो-
नव भारत-निर्माण में अब तो नहीं है कोई अड़ंगा।।
                                 फहरा आज तिरंगा........।।
नहीं दूर अब वह दिन मित्रों,जब फहरेगा झण्डा,
गिलगित-बाल्टिस्तान के ऊपर,पाक का फोड़ के भण्डा।
प्राप्त करेगा अपना गौरव,पुनः ये राष्ट्र हमारा-
करके सब नापाक पाक की,गन्दी चाल को नंगा।।
     लालकिला से लाल चौक तक,फहरा आज तिरंगा।।

आया राखी का त्यौहार...



आया राखी का त्यौहार, 
लेके खुशियाँ हज़ार।
भइया-बहना का प्यार,
रिम-झिम सावन की फुहार-आया राखी का त्यौहार।।
रंग-बिरंगी सजी हैं राखी,
हाट-बाज़ार-गलियन में।
लहराते-मुस्काते जैसे,
कुसुम लगें बगियन में।
लेके आभा अपरम्पार-आया राखी का त्यौहार।।
चुनतीं हैं राखी सब बहनें,
देखो सम्हल-सम्हल के।
भइया के मन भाये राखी,
निरखें बदल-बदल के।
पहने अरमानों का हार-आया राखी का त्यौहार।।
प्रेम का धागा हाथ में बाँधे,
बन्धन जनम-जनम का।
चन्दन-रोरी भाल लगाये,
पाये प्यार बहन का।
भइया देता उपहार-आया राखी का त्यौहार।।
राखी बाँधी लक्ष्मीबाई,
जो कर्मा सिंह समर को।
दिया हुंकार उसी ने तब,
भारत-स्वातन्त्र्य ग़दर को।
अनुपम माटी का प्यार-आया राखी का त्यौहार।।
पतले इन धागों में मानो,
अद्भुत शक्ति है प्यारे।
मिल कर तोड़ सके न इनको,
जग के अन्धड़  सारे।
इनमें सतत बहे रसधार-आया राखी का त्यौहार।।
लेके खुशियाँ हज़ार।।

उमड़ चाहतों का...




आज फिर याद आया उन्हें देखकर,
जो गुजरा ज़माना वर्षों पहले था छाया।
फिर जग उठी इक ललक ज़िन्दगी में-
उमड़ चाहतों का समन्दर फिर आया।।
     अरमान-पेटिका पे जो ताले जड़े थे,
     वो खुलने लगे पा इशारा किसी का।
     डूबती एक किश्ती को जैसे अचानक,
     मिल गया हो सुरक्षित किनारा नदी का।
     चाहतें सूखे पत्ते सी जो मर रहीं थीं-
      उन्हें प्रेम-वर्षा ने फिर से जिलाया।।
                            उमड़ चाहतों का.....।।
अतृप्त प्यास लेके वो मन का पंछी,
जा बैठा अंधेरे में छुप कर कहीं।
कभी हो विकल ढूंढता आशियाँ वो,
खिन्न होकर पुनः लौट आये वहीं।
उसे मिल गया ठौर फिर से अचानक-
बहारों ने दौरे खिज़ां को भगाया।।
              उमड़ चाहतों का.........।।
सूखे दरख़्तों पे पत्तों का उगना,
होता नहीं कभी सम्भव जगत में।
टूटे हुए बिखरे शीशे के टुकड़ों का,
जुड़ना क़ुदरती न सम्भव जगत में।
पर कर दिया आज सम्भव असम्भव को-
जो मन मेरा पा दरस मुस्कुराया।।
                उमड़ चाहतों का........।।
घुल गयी अब महक सांस की सांस में,
सारे शिकवे-गिले बदले विश्वास में।
तार नज़रों के नज़रों से अब जुड़ गए,
दिल जुड़ गए फिर मिलन-आस में।
थम गयी थी जो पहिया रथ ज़िंदगी की-
पुनः आज उसको किसी ने चलाया।।
    उमड़ चाहतों का समन्दर फिर आया।।

सबका झण्डा एक...



नवभारत-संकल्प तो केवल इतना है,
सबका झण्डा एक तिरंगा अपना है।
हुआ अभिन्न अंग कश्मीर पुनः भारत का-
अगस्त पाँच उन्नीस को,पूर्ण हुआ वो सपना है।।
                             सबका झण्डा एक......।।
सबका है कश्मीर और कश्मीर के सब हैं,
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई, कश्मीरी अब हैं।
कर न सकेगी उन्हें अलग,अब कानूनी धारा-
नव निर्मित इतिहास का बस यह कहना है।।
                         सबका झण्डा एक......।।
पलट गया इतिहास सियासतदानों का,
बिगड़ गया जो खेल था सत्तर सालों के।
मिला पटल आज़ादी का उस माटी को-
स्वर्ग सरीखी अनुपम जिसकी रचना है।।
                       सबका झण्डा एक......।।
हुआ अन्त अब हिंसावाद हिमायत का,
अलगाववाद की बेढब नीति रवायत का।
धरे रह गये ताख पे सब मन्सूबे उनके-
जिनका लक्ष्य तो केवल ठगना है।।
                    सबका झण्डा एक......।।
हुईं दुकानें बन्द सभी धर्मान्धों की,
कट्टरपन्थी ताकत कुत्सित धन्धों की।
नयी दिशा अब मिलेगी सब नवयुवकों को-
करेंगे निज उत्थान स्वयं जो करना है।।
                 सबका झण्डा एक......।।
देश सुरक्षित रहेगा,साथ कश्मीर भी,
बिगड़ेगी अब नापाक पाक तक़दीर भी।
होगा शीघ्र विनाश विरोधी ताक़त का-
चाल बेढंगी दुष्टों की नहिं सहना है।।
                सबका झण्डा एक......।।
होगा पूर्ण विकास स्वर्ग सी घाटी का,
होगा अब आग़ाज़ नयी परिपाटी का।
पुनः खिलेगा फूल सुगन्धित मानवता का-
भारत का जो रहा सदा से गहना है।।
      सबका झण्डा एक तिरंगा अपना है।।

विपदा काल काम जे आवै...



विपदा काल काम जे आवै।साँचा मीत उहइ कहलावै।।
साँच मीत बस उहवै भाई।गूढ़ रहस जे रहइ छिपाई।।
करै प्रचार मीत जस-कीर्ती।दिग-दिगन्त जहँ तक रह धरती।।
तजै न साथ-संग केहु भाँती।जरै-बुते जस दीपक-बाती।।
नहिं कोउ राग-द्वेष दोउ मीता।तजहिं न सँग बरु जग विपरीता।।
लगै चोट इक रोवै दूजा।रँग बदलै जस लखि खरबूजा।।
जीवहि सँग माया लिपटानी।जानउ इहवै मीत-कहानी।।
जाको मिलै मीत जग साँचा।तासु भागि उत्तम बिधि राँचा।।
करै मीत मीत सेवकाई।सेवा-भावहि होय भलाई।।
दोहा-कृष्न-सुदामा मित्रता,जानै जग-संसार।
चिउड़ा लइ मुट्ठी भरै,सम्पति दीन्ह अपार।।
                                               गीता-सार,नीति-वचन

Sunday, August 4, 2019

सब मिल पौध लगाओ...



अबकी इस बरसात का,मत पूछो क्या हाल?
जलाधिक्य से हो गया,पूरा देश बेहाल।
                              चहूँ-दिशि पानी-पानी-
                              इन्द्र देव की मेहरबानी।।
महाराष्ट्र गुजरात से ले कर,असम और बंगाल,
उत्तराखण्ड-हिमाचल का भी,होवे ख़स्ता हाल।
                              डूबते राजस्थानी-
                              इन्द्र देव की मेहरबानी।।
झारखण्ड-बिहार-उड़ीसा, केरल भी जल-प्लावित,
तमिलनाडु औ एम.पी.-यू.पी.,सभी हैं बाढ़-प्रभावित।
                        सभी जनों की दुखद कहानी-
                              इन्द्र देव की मेहरबानी।।
जम्मू औ कश्मीर में पर्वत,भरभराय भहरायें,
जलाघात से गिर चट्टानें,वज्रपात बन  जायें।।
                          मिले न पथ की कोई निशानी-
                              इन्द्र देव की मेहरबानी।।
उमड़ि-घुमड़ि जब बरसें बादल, हाय-हाय मच जाय,
नदी-खेत-खलिहान-सड़क का,सब अन्तर मिट जाय।
                          क्रूर प्रकृति की कारस्तानी-
                              इन्द्र देव की मेहरबानी।।
पेड़ काटना और प्रदूषण,होता बहुत ही घातक,
तापमान का घटना-बढ़ना,जीवन-लीला-नाशक।
                        करे जगत की झट-पट हानी-
                               इन्द्र देव की मेहरबानी।
मान प्रकृति को पर्व एक अब,सब मिल पौध लगाओ,
हरी-भरी पृथ्वी को रखना,अपना लक्ष्य बनाओ।
                              करो न कोई आना-कानी-
                               इन्द्र देव की मेहरबानी।।

शेष रह गयी...



शेष रह गयी स्मृति केवल,
और नहीं कुछ शेष रहा।
अपने जन यदि करें स्मरण-
समझो,यही विशेष रहा।।
         शेष रह गयी स्मृति केवल.........।।
पुनश्च-अक्षर-सुमन हैं अर्पित मेरे,उस सच्चे अध्यापक को,
अध्यापन ही लक्ष्य था जिसका,उस के.पी.संस्थापक को।।