हार से जीत से कुछ न लेना हमें,
बस लगन चाहिए ज़िन्दगी के लिए।
देख,काशी में काबा में रखा है क्या-
बस किशन चाहिए वन्दगी के लिए।।
है ये दुनिया का कितना बड़ा दायरा!
इक से इक बढ़ के दौलत नशीं हैं यहां।
पर हमारा न दौलत से नाता कोई -
बस किरन चाहिए रौशनी के लिए।।
कुछ को शोहरत की रहती यहां लालसा,
कुछ को रहता नशा यार-दिलदार का।
हमको चहिये न दुनिया की कोई खुशी-
बस सनम चाहिए हर खुशी के लिए।।
लोग दुनिया के अपनों में मशगूल हैं,
चैन-अम्नो-ख़ुशी से ये महरूम हैं।
मर मिटे दूसरों पर ये सीखा नहीं-
बस,करन, चाहिए बानगी के लिए।।
लाख कोशिश किया हमने सुलझाने की,
ज़िन्दगी उलझनों में उलझती गयी।
उलझनों से न कोई बचा है यहां-
बस,मनन,चाहिए रुख़्सती के लिए।।
चैन चित में नहीं,चैन दिल में नहीं,
लगते बाहर से केवल वो जानो सुखी।
वाह्य आडम्बरों से जो नफ़रत करे-
बस वो मन चाहिए सादगी के लिए।।
सबके महले-दोमहले बहुत हैं यहां,,
पर जो देखा तो कोई नहीं है सुखी।
लोग रहते हर इक पल परेशान यहां-
बस,लगन, चाहिए ज़िन्दगी के लिए।।
Sir Pranam, Very realistic and thoughtful lines.May God bless you with health and fitness to contribute the Society.Regards
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