रिम-झिम पड़ेला फुहार सवनवां त आय गईलें सखिया,
पेड़वा पे झुलेला झलुवा त दिलवा रसाय गईलें सखिया।।
पुरुवा के झोकवा से आवेले बयरिया,
पनिया के बूँदवा में टिके ना नजरिया।
त मनवाँ में उठै ले कसकिया-
सावरिया भुलाय गईलें सखिया।।
रिम-झिम....
काले-काले बदरन कै छटा हौ निराली,
बिजुरी ज चमके त भागूँ हाली-हाली।
बिरहा के अगिया से जली मोरि-
सरीरिया कुम्हिलाय गईलें सखिया।।
रिम-झिम....
एको पल सोवूं नाही, जागूँ सारी रतिया,
का करूँ रामा हमरे आवे नाही बतिया।
त हथवा कै गिनीला अँगुरिया-
रतिया अपार भईली सखिया।।
रिम-झिम....।।
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