झूमते हैं भौंरे कलियों को देख कर।
फूलों के तन से टपके पसीना यूँ तरबतर।।
झरनों की थिरकनों से दिल होता बाग-बाग।
लगती उन्हें है ठोकर,गिरते हैं दर-ब-दर।।
कोयल की मीठी बोली लगती बड़ी सुहानी।
काली निशा से निकले,रवि-रश्मि बनके रहबर।।
विश्वास-आस्था से बढ़ कर नहीं है कुछ भी।
होती नहीं तसल्ली,दिल में किसी को ठग कर।।
छोटा ही सा बीजांकुर बनता विशाल तरुवर।
संघर्ष से ही जीवन,होता है प्यारे बेहतर।।
लेती है इम्तिहान हरदम पग-पग पे ज़िन्दगी।
डट कर करो मुक़ाबला,कस-कस के ख़ुद कमर।।
ख़ुद के लिए जो जीता जीना नहीं है उसका।
पत्थर भी खा के देता,मीठा ही फल ये तरुवर।।
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