काम को, क्रोध को, लोभ को, मोह को,
गर जहाँ से मिटा दें तो क्या बात है!
राह में जो गिरा, गिर के उठ ना सका,
गर गिरे को उठा दें तो क्या बात है!
रोज़ जीते हैं हम सिर्फ़ अपने लिए,
ऐसा जीना भला कैसा जीना हुआ!
सिर्फ़ तन के लिए ना-वतन के लिए,
जो जियें हम यहाँ, गर तो क्या बात है! राह में ....... ॥
एक बादल उठा चाँद को ढँक लिया,
चाँद फिर भी अंधेरे में रोशन रहा।
इस तरह गर्दिशे ग़म तो आते ही हैं,
दोस्ती इनसे कर लें तो क्या बात है! राह में ...........॥
जो जनम ले लिया, जो यहाँ आ गया,
सबके जीने का हक है बराबर यहाँ।
हक बराबर रहे, है ये ख्वाहिशे खुदा,
आदमी मान ले, गर तो क्या बात है! राह में ..........॥
बात तो बात है, बात में कुछ नही,
बात ही बात में बात हो जाती है।
बात बिगड़ने ना पाये, यही बात है,
बात को गर बना दें तो क्या बात है! राह में ...........॥
Sunday, August 23, 2009
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