पत्थर-दिल रहते हैं,
पत्थर के मकानों में।
मिलती है बला की खुशी,
छप्पर के ठिकानों में॥ पत्थर-दिल...........॥
बालू का घरौंदा है,
जीवन एक सौदा है।
सोने को पहचानो,
माटी के खदानों में॥ पत्थर-दिल............. ॥
क्या बोल हैं सावन के !
क्या कहती पुरवायी !
चंचल नदिया बहती-
मय सी मयखानों में॥ पत्थर-दिल............॥
बागों में मस्ती है,
हर शाख़ महकती है,
क्या स्नेह-सिन्धु उमड़े-
खग-मृग के घरानों में॥ पत्थर-दिल...........॥
पीपल है, पनघट है,
गोरी है, गागर है,
हीरे की कनी सी वो
कुदरत के खजानों में॥ पत्थर-दिल............॥
Thursday, August 20, 2009
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