कर्म के दीप यदि तुम जलाते रहो,
कष्ट के सब तिमिर लुप्त हो जायेंगे।
होगा दर्शन त्वरित एक सुप्रभात का,
बंद पंकज-भ्रमर मुक्त हो जायेंगे॥ कर्म के दीप....... ॥
कर निरीक्षण तनिक तू अखिल विश्व का
धरती-अम्बर व् सरिता, सप्त-सिन्धु का।
सबके आधार में तम् ही प्रच्छन्न है,
ज्योति-दाता परन्तु सूर्य प्रसन्न है,
धैर्य से पथ पे यदि तुम निरंतर चलो-
आपदाओं के क्षण गुप्त हो जायेंगे॥ कर्म के दीप.......॥
रात्रि चाहे कुहासों से आछन्न हो,
चाँदनी का गगन-क्षेत्र आसन न हो।
धुंध का ही चतुर्दिक् प्रहर क्यों न हो,
कंटकाकीर्ण आपद् डगर क्यों न हो।
चेत् मस्तिष्क मानव का चैतन्य नही,
स्वप्न-सरगम के सुर सुप्त हो जायेंगे॥ कर्म के दीप...॥
स्वार्थ-लोलुप न हो, कर्म-साधक बनो,
कर्म ही ईष्ट है कर्मोपासक बनो।
सृष्टि का धर्म बस कर्म ही कर्म है,
कर्म ही धर्म है, कर्म ही धर्म है।
कर्म की यष्टि से यदि करो पथ-भ्रमंड,
लक्ष्य जीवन के सब तृप्त हो जायेंगे॥ कर्म के दीप.....॥
Friday, August 21, 2009
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