ये घटा घिर गयी, रोशनी ना रही,
ग़म ना करना, अँधेरा छटेगा ज़रूर।
रात आयी है, इसको तो आना ही था,
ग़म ना करना सबेरा तो होगा ज़रूर॥ ये घटा घिर....... ॥
हैं जो बादल यहाँ, चंद लमहों के हैं,
इनका आना हुआ, समझो, जाना हुआ,
ग़म ना करना बसेरा तो होगा ज़रूर॥ ये घटा घिर........॥
ये जो तूफ़ान है, इसमें ईमान है,
फ़र्ज़ पूरा करेगा चला जाएगा,
इसको मेहमाँ समझकर गले से लगा,
देखना, ग़म-घनेरा घटेगा ज़रूर॥ ये घटा घिर............॥
ज़िन्दगी के कई रंग देखे हैं हमने,
कभी खुशहाल है तो कभी बदहाल है।
वक्त बदले है ये इक घड़ी की तरह,
देखना, सुख का फेरा लगेगा ज़रूर॥ ये घटा घिर..........॥
भूख है, प्यास है, आस-विश्वास है,
शान्ति है, क्रान्ति है, इसमें उपवास है।
ज़िन्दगी ऐसी गर, कर लिए हम बसर,
जग ये जन्नत का डेरा बनेगा ज़रूर॥ ये घटा घिर.........॥
Sunday, August 23, 2009
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