Monday, November 26, 2018

जी में आये...


जी में आये कि रंग भरा गीत लिख दूँ।
उछलूँ-कूदूँ लकीरे संगीत लिख दूँ।।
   कुदरत की रचना कहि नहि जाये,
   निरखि-निरखि जियरा बहु हुलसाये।
   मन में हुलास की बहे रसधार-
कि बहारों पे अपना मनमीत लिख दूँ।।
                                 जी में आये....
नदिया की धार संग पवन इठलाये,
अम्बर पे बादल मल्हार जनु गाये।
सावन की बूदों में भीजि करि गोहार-
साजन के दिल पे मै जीत लिख दूँ।।
                              जी में आये……..
  देखि-देखि धरती की धानी चुनरिया,
 रहि-रहि मनवा पुकारे सावरिया।
  बिना रोशनाई -कलम औ दवात-
  कोई मैं किताबे प्रीति लिख दूँ।।
                          जी में आये....
पहाड़ों पे काली घटा घिरी आये,
चमकि-चमकि बिजली मधुर मुसकाये।
देखि के मयूरा का ठुमक-ठुमक नाच-
जी में आये कि अमर प्रेम-रीति लिख दूँ।।
                        जी मे आये....
खेतों औ बागों में फैली हरियाली,
प्यारी-प्यारी पावस की ऋतु है निराली।
नदी-ताल-पोखर की देखि तरुणाई-
जिया कहे कुदरत की नीति लिख दूँ।।
                          जी में आये ……..
ऋतुओं में पावस ऋतु का नज़ारा,
बड़ा मनोहारी औ सबका सहारा।
नीर अमृत की देखि बौछार-
प्यास बुझने की आस-परतीति लिख दूँ।।
                        जी में आये कि रंग भरा गीत लिख दूँ।।

बाँसुरी बजाया कोई...


बांसुरी बजाया कोई,
आज याद आया कोई ।
भूली,बिसरी यादों में-
हल- चल मचाया कोई।।
मायूस होके ख्वाहिशें सब,
जाने कब कहाँ खो गईं?
सोती हुईं ख्वाहिशों को-
आज फिर जगाया कोई।।
थम गयीं थीं घंटियां जो
सारी मन के मंदिर की।
उन्हीं सारी घंटियों को-
आज फिर बजाया कोई।।
बीती हुयी घड़ियों की,
खट्टी-मीठी बातें जो।
खोई रहीं जाने कहाँ-।
आज फिर सुनाया कोई।।
बांसुरी की टेर सुन के,
भौरे गुन गुनाने लगे।
चमन की सारी कलियो को-
आज फिर खिलाया कोई।।
थम गई थी रुन-झुन जो,
पर्वती -प्रपातो की।
उतर के रूहे झरनो में -
आज फिर हँसाया कोई।।
बांसुरी तो है बाँस की,
मगर है स्रोत -ओज-आस की।
बाँसुरी की तान छेड़ के-
प्रेम -रस पिलाया कोई।।

बवूराये हो...



देखि के अकसवा मा उमड़ल बदरिया,
बवूराये हो चित मोरा सवरिया।।
     झूला झूलत सुधि तोहरी आवे,
     तोहरे सिवा मोहे कछु नहि भावे।
     चिहुँक उठे जियरा जब चमके बिजुरिया-
     बवूराये हो....
नहीं कोई चिट्ठी ना कोई सनेसवा,
भूलि गयो प्यारे तू जाई के बिदेसवा।
हुकि उठे सुनि-सुनि के रेल कै बंसुरिया-
बवूराये हो....
   नदी -पेड़-पर्वत पे छायी जवानी,
  हरी-भरी धरती कै अनुपम कहानी।
  उमड़े जियरवा लखि नदी कै लहरिया-
  बवूराये हो....
वन-उपवन में पंछी कै कलरव,
नर्तन मयूरा कै कुसुमित पल्लव।
लगै नीक नाही बड़ सुन्दर फुलवरिया-
बवूराये हो....
  बरखा त हवै सब ऋतुवन कै रानी,
रिम-झिम फुहारन कै अदभुत रवानी।
झुलसे बदनवा जब बरसै बदरिया-
  बवूराये हो....
बिरहा अगन कै लौ नहि दिखती,
चारो पहर पर रहती सुलगती।
समुझै जलन बस पगली बावरिया-
बवूराये हो चित मोरा सावरिया।।

राही, ज़रा...


जीवन की डोर कट जायेगी,
कोई सम्पति न तेरे संग जायेगी।
राही, ज़रा देख के चलो।।
     इस दुनिया का रंग निराला,
कोई यहां गोरा तो कोई यहां काला।
रंग में भंग पड़ जायेगी-
राही, ज़रा....।।
   आज अभी जो कर सकते हो,
  आगे बढ़कर कर लो।
  कल तो नगरी लुट जायेगी-
  राही, ज़रा....।।
बिना भरम के, बिना मरम के,
बढ़ते जाओ भाई।
वरना,मंजिल छूट जायेगी-
राही, ज़रा....।।
  इक पल रोना,इक पल हँसना,
  हँसना-रोना जीवन।
  सिर्फ़ हँसने से बात बन जाएगी-
  राही, ज़रा....।।
नीचे देखो,ऊपर देखो,
देखो, दायें-बायें।
ठोकर से मुक्ति मिल जायेगी-
रही,ज़रा.…..।।
  राहें हों पथरीली फिर भी,
  चलो,तू बन्धु सँभल के।
  खुशियों से झोली भर जायेगी-
राही,ज़रा देख के चलो।।

मेरे दोस्त तुम ...



मेरे दोस्त तुम क्या से क्या हो गए हो?
कल तक थे अपने अब ख़फा हो गए हो
मधुवन की कलियाँ, गावों की गलियाँ
नदी के किनारे, कुदरती नज़ारे,
सभी के सभी तो हैं पहले ही जैसे―
केवल तुम्ही बस दफ़ा हो गए हो  |
                     मेरे दोस्त तुम .....
आई दिवाली खुशियां मनाली
खुशियो से मन की पीड़ा मिटा ली
वही थी अमावस , वही थी सजावट।
मगर बस तुम्ही बेवफा हो गए  हो।
                      मेरे दोस्त तुम .....
बहती हवा पूछे तेरा ठिकाना ,
समझ में न आये , क्या है बताना ।
चारों दिशाएँ   नहीं कुछ बताएं ,
न  जाने  कहाँ  गुमशुदा  हो  गए  हो।
                       मेरे दोस्त तुम....
फ़िज़ाओं  में खुशबू चमन है बिखेरे,
हैं गाते परिन्दे सबेरे, सबेरे ।
मधुर रागिनी से विकल चित हो मेरा,
भाये न चंदा , तुम जुदा हो गए हो।
                       मरे दोस्त तुम...
झरनो की थिरकन , भौरों का गुँजन,
पावस की रिम- झिम ,मयूरो का नर्तन।
दबे पॉव देते हैं एहसास तेरा-
मानो तुम्ही अब ख़ुदा हो गए हो ।
                         मेरे दोस्त तुम...। ।