कुछ पल और ठहर जाओ,
यादों के शीश-महल में,
कुछ पल और संग में नाचो
सपनों के रंग-महल में। कुछ पल और....... ॥
साक़ी बगैर शराब तो शराब नही है
खुशबू बगैर गुलाब तो गुलाब नही है,
कुछ पल और मय पिलाओ,
महफिलों की हलचल में। कुछ पल और..... ॥
तेरे मेरे गीत मिलके राग बनेंगे,
हर साज़े दिल की जानेमन, आवाज़ बनेंगे,
कुछ पल और संग में गाओ,
चाहतों की चहल-पहल में। कुछ पल और....॥
तूँ जो मिल गए तो समझो चाँद मिल गया,
भटके कदम को उसका मुकाम मिल गया,
कुछ पल और चलते जाओ-
ज़िन्दगी के मरू-थल में। कुछ पल और..... ॥
Sunday, September 6, 2009
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wah!narayan narayan
ReplyDeletebehatareen geet , wah. badhai.
ReplyDeleteआपकी पिछली रचना अगर पतझड़ का चित्रण थी तो यह बसंत...बधाई
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