तुझे हो मुबारक तेरा प्यारा दिलबर,
मेरे दिल को कोई शिकायत नही है।
चली जा कली बन के तूँ उस चमन की,
मेरे दिल-चमन को कोई शिकायत नही है॥
दुनिया तो बगिया है ज़िन्दगी की,
शम्मा है मुहब्बत की रौशनी की।
चली जा कली बन के तूँ उस चमन की,
मेरे दिल को कोई शिकायत नही है॥ चली जा...... ॥
मेरा क्या ठिकाना, मैं एक दीवाना,
कभी हूँ हकीक़त कभी हूँ फ़साना।
पतंगा जला है शम्मा की लपट से,
मुहब्बत के जग की रवायत यही है॥ चली जा...... ॥
समझना हमें एक झोंका पवन का,
कि उड़ता हुआ एक पंछी गगन का।
सलामत रहे यार तेरा जहाँ में,
खुदा को भी मेरी हिदायत यही है॥ चली जा......... ॥
Thursday, September 3, 2009
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यह सरलता और ईमानदार से सराबोर रचना , बहुत कुछ कह रही है ! बधाई ऐसे निर्मल मन को !
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